श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “हिंदी पखवाड़ा…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 215 ☆ हिंदी पखवाड़ा… ☆
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सागर में मिलती धाराएँ, हिन्दी सबकी संगम है।
शब्द, नाद, लिपि से भी आगे, एक भरोसा अनुपम है। ।
गंगा कावेरी की धारा, साथ मिलाती हिन्दी है।
पूरब- पश्चिम, कमल- पंखुरी, सेतु बनाती हिन्दी है। ।
– गिरजा कुमार माथुर
हिन्दी का गुणगान करती हुयी अद्भुत पंक्ति अपने आप में सबके हृदय की भावनाओं का उद्गार ही है जो कवि गिरजा कुमार माथुर जी की लेखनी से प्रस्फुटित हुआ।
राष्ट्र निर्माण का कार्य हमारे शिक्षक बखूबी करते हैं। भारत के द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन जी के जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाकर हम सभी अपने शिक्षकों को नमन करते हुए उनके दिखाए रास्तों को याद कर उस पर चलने हेतु हर वर्ष संकल्प लेते हैं।
हिन्दी को जब तक हम बोलचाल, लेखन, कार्यालयीन व अध्ययन में शामिल नहीं करेंगे तब तक इसे राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित होने के लिए संघर्ष करना ही पड़ेगा। हमें प्रान्तवाद से ऊपर उठ कर देशहित में चिंतन करना चाहिए। जहाँ के निवासी अपनी भाषा व बोली का सम्मान नहीं करते उनका विकास वहीं रुक जाता है।
हम सबको एक जुट होकर संकल्प लेना चाहिए कि केवल हिन्दी को ही बढ़ावा देंगे। विश्व गुरु बनने की चाहत मातृ हिन्दी के प्रयोग से ही संभव हो सकती है।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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