श्री कमलेश भारतीय
(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब) शिक्षा- एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)
☆ पुस्तक चर्चा ☆ “धरोहर” (कथा संग्रह) – संपादक : सुश्री रत्ना भदौरिया ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆
संपादक : रत्ना भादौरिया
कथा संग्रह : धरोहर
प्रकाशक : वान्या पब्लिकेशंज, कानपुर
मूल्य : 700 रु पेपरबैक
पृष्ठ : 296
☆ “धरोहर : जीवन की सांध्य बेला की मार्मिक कहानियां” – कमलेश भारतीय ☆
युवा रचनाकार रत्ना भादौरिया, जो प्रसिद्ध कथाकार मन्नू भंडारी की परिचारिका के रूप में काम करते करते खुद लेखन कार्य आरम्भ कर दिया । अब रत्ना भादौरिया ने एक कहानी संग्रह संपादित किया है ‘धरोहर’ जो जीवन की सांध्य बेला से जुड़ीं 41 कहानियों का खूबसूरत संकलन है । आज जब इस पर कुछ कहने जा रहा हूँ तो संयोगवश पितृपक्ष चल रहा है । हम परंपरा के तौर पर अपने पित्तरों को याद कर रहे हैं । नवांशहर में मेरे बचपन के दोस्त बृजमोहन के पिता पंडित लोकानंद इन दिनों के लिए परिवारजनों से कहा करते थे कि अरे ! जीते जी मुझे खीर पूरी, हलवा खिला लो, बाद में कौन देखेगा क्या करते हो ? सचमुच यह प्रसंग याद आया और ये इसी प्रसंग से जुड़ी कहानियो़ं का संकलन है । जीते जी तो घोर उपेक्षा मां बाप की और मृत्यु भोज पर खर्च दिखावे का ! डाॅ इंद्रनाथ मदान भी कहते थे दिखावे के लिए अखबारों में स्मृति दिवस मनायेंगे लेकिन जीते जी ? अपनी प्रतिष्ठा का यह दोगलापन ! हमारे देश में संयुक्त परिवार का चलन खत्म होता जा रहा है और एकल परिवार फल फूल रहे हैं, ऐसे में वृद्धाश्रमों की व्यवस्था आ गयी है । ये सब इन 41 कहानियों की आत्मा में है । सभी कहानियों में वृद्धों की परिवार में दिन प्रतिदिन घटती अहमियत और घोर उपेक्षा को सामने आता है ! सूरज प्रकाश की कहानी ‘ये हत्या का मामला है’ दिल दहला देने वाली कहानी है कि एक रिटायर्ड प्रिंसिपल पिता का अंत दोस्त के पास लावारिस की तरह होता है क्योंकि बेटे ने मकान बेचकर महानगर में घर लिया और फिर अचानक एक्सीडेंट में मृत्यु हो जाने पर बहू सब कुछ बेचकर मायके चली गयी ससुर को लावारिस छोड़कर ! यही है आज का सच, यही है सांध्य बेला का अंतिम सत्य ! कल्पना मनोरम की कहानी ‘आखिरी मोड़ पर’ भी याद रहने वाली मार्मिक कहानी है । कैसे एक बेटा मां को वृद्धाश्रम में छोड़कर इंग्लैंड चला गया और सुहानी उस मां को ढूंढ निकालती है और इंग्लैंड ले आती है और उसी संबंधी बेटे को बुलाती है पर मां उसके साथ जाने से इंकार कर देती है । सूरज सिंह नेगी की ‘आम की गुठली’ बहुत भावुक कर देती है । कोई चाहे तो मेरी कहानी ‘भुगतान’ भी पढ़ सकता है, जो एक वृद्ध नौकर की वह इच्छा है, जो मर कर भी अधूरी रहती है । विवेक मिश्रा की एल्बम भी दिल को छू जाती है।
पूनम मनु, सुमन केशरी,योगिता यादव, सुधांशु गुप्त, राजीव सक्सेना, अनिता रश्मि, रिंकल शर्मा, लता अग्रवाल, संतोष सुपेकर, सुधा भार्गव नीरू मित्तल, इंदु गुप्ता, नागेंद्र जगूड़ी, निर्देश निधि आदि की कहानियां भी पठनीय हैं, स्मरणीय हैं ।
रत्ना भादौरिया का श्रम सार्थक है और चयन बहुत खूबसूरत । इस युवा रचनाकार को ढेर सारी शुभकामनाएं । संग्रह पठनीय और सहेज कर रखने लायक है ।
© श्री कमलेश भारतीय
पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी
संपर्क : 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈