आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है हम हैं अभियंता…।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 205 ☆
☆ हम हैं अभियंता ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
(छंद विधान: १० ८ ८ ६ = ३२ x ४)
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हम हैं अभियंता नीति नियंता, अपना देश सँवारेंगे
हर संकट हर हर मंज़िल वर, सबका भाग्य निखारेंगे
पथ की बाधाएँ दूर हटाएँ, खुद को सब पर वारेंगे
भारत माँ पावन जन मन भावन, श्रम-सीकर चरण पखारेंगे
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अभियंता मिलकर आगे चलकर, पथ दिखलायें जग देखे
कंकर को शंकर कर दें हँसकर मंज़िल पाएं कर लेखे
शशि-मंगल छूलें, धरा न भूलें, दर्द दीन का हरना है
आँसू न बहायें , जन-गण गाये, पंथ वही तो वरना है
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श्रम-स्वेद बहाकर, लगन लगाकर, स्वप्न सभी साकार करें
गणना कर परखें, पुनि-पुनि निरखें, त्रुटि न तनिक भी कहीं वरें
उपकरण जुटाएं, यंत्र बनायें, नव तकनीक चुनें न रुकें
आधुनिक प्रविधियाँ, मनहर छवियाँ, उन्नत देश करें
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नव कथा लिखेंगे, पग न थकेंगे, हाथ करेंगे काम काम सदा
किस्मत बदलेंगे, नभ छू लेंगे, पर न कहेंगे ‘यही बदा’
प्रभु भू पर आयें, हाथ बटायें, अभियंता संग-साथ रहें
श्रम की जयगाथा, उन्नत माथा, सत नारायण कथा कहें
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
१८-४-२०१४
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