श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “जहर भी अब शुध्द मिलता है कहाँ…” ।)
☆ तन्मय साहित्य #249 ☆
☆ जहर भी अब शुध्द मिलता है कहाँ… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
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चमकते बाजार में सब भ्रमित, है कुछ ज्ञात क्या
आवरण में छिपे सच के, झूठ का अनुपात क्या।
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जहर भी अब मोल महँगे, शुद्ध मिलता है कहाँ
जरूरी जो वस्तुएँ, उनकी करें हम बात क्या।
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माह सावन और भादो में, तरसते रह गए
बाद मौसम के, बरसते मेह की औकात क्या।
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तुम जहाँ हो, पूर्व दो दिन और कोई था वहाँ
कल कहीं फिर और , ऐसा अल्पकालिक साथ क्या।
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चाह मन की तृप्त, तृष्णायें न जब बाकी रहे
सहज जीवन की सरलता में, भला शह-मात क्या।
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छोड़कर परिवार घर को, वेश साधु का धरा
चिलम बीड़ी न छुटी, यह भी हुआ परित्याग क्या।
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अब न बिकते बोल मीठे, इस सजे बाजार में
एक रँग में हैं रँगे सब, क्या ही कोयल काग क्या।
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अनिद्रा से ग्रसित मन, जो रातभर विचरण करे
पूछना उससे कभी, सत्यार्थ में अवसाद क्या।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈