श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज प्रस्तुत है  स्व लता मंगेशकर जी  पर आपका आलेख )

(२८ सप्टेंबर १९२९- ६ फेब्रुवारी २०२२)

? आलेख ☆ स्व. लता मंगेशकर ☆ श्री सुरेश पटवा ?

पथिक ने स्टेट बैंक सेंट्रल आफिस में पोस्टिंग के दौरान दो-तीन साल मुंबई में गुज़ारे हैं। वह कभी-कभी लता जी के दर्शन हेतु गिरगांव चौपटी से होता हुआ पेद्दर रोड़ पर जाकर खड़ा हो जाता था। एक दिन शनिवार को लता जी ने भीड़ को उनके अपार्टमेंट से हाथ हिलाकर अभिवादन किया। पथिक भीड़ में मौजूद था। उसने उनकी ज़िंदगी के सफ़े खोलना शुरू किए।

भारत में ऐसा कोई आदमी नहीं होगा जिसने लता मंगेशकर के गीतों में डूबकर अपने प्रेम, आनंद, दुःख, हताशा, विदाई को न जिया हो। आज़ाद भारत का एक अजूबा थीं लता। आदमी तो आदमी पशु भी उनके गायन के दीवाने हैं।

मुंबई और पूना के बीच गायों का एक उच्च तकनीक से सज्जित वातानुकूलित फार्म हाउस है जिसमें गायों को काजू किसमिस बादाम पिस्ता खिलाया जाता है। उन्हें लता जी के गाने सुनाए जाते हैं। वहाँ एक प्रयोग किया गया। जिस दिन उन्हें लता गाने नहीं सुनाए उन्होंने दूध रोक लिया।

लता की जादुई आवाज़ के भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में दीवाने हैं। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्वगायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है।

लता मंगेशकर भारत की सबसे लोकप्रिय और सम्मानित गायिका हैं, जिनका छ: दशकों का पार्श्व गायन उपलब्धियों से भरा पड़ा है। लता जी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक के रूप में रही है। अपनी बहन आशा भोंसले के साथ लता जी का फ़िल्मी गायन में सबसे बड़ा योगदान रहा है।

लता का जन्म मराठा परिवार में, मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के नज़दीक महू में पंडित दीनानाथ मंगेशकर के मध्यवर्गीय परिवार की सबसे बड़ी बेटी के रूप में 28 सितंबर, 1929 को हुआ। उनके पिता रंगमंच के कलाकार और गायक थे। इनके परिवार से भाई हृदयनाथ मंगेशकर और बहनों उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर और आशा भोंसले सभी ने संगीत को ही अपनी आजीविका के लिये चुना।

हालाँकि लता का जन्म महू में हुआ था लेकिन उनकी परवरिश महाराष्ट्र में हुई। लता ने पाँच साल की उम्र से पिता के साथ एक रंगमंच कलाकार के रूप में अभिनय करना शुरु कर दिया था।

जब उनके पिता की 1942 में हृदय रोग से मृत्यु हो गई। उस समय इनकी आयु मात्र तेरह वर्ष थी. भाई बहिनों में बड़ी होने के कारण परिवार की जिम्मेदारी का बोझ उनके कंधों पर आ गया था. दूसरी ओर उन्हें अपने करियर की तलाश भी थी। उन्हें बहुत आर्थिक किल्लत झेलनी पड़ी और काफी संघर्ष करना पड़ा। उन्हें अभिनय बहुत पसंद नहीं था लेकिन पिता की असामयिक मृत्यु की वज़ह से पैसों के लिये उन्हें कुछ हिन्दी और मराठी फ़िल्मों में काम करना पड़ा।

नवयुग चित्रपट फिल्म कंपनी के मालिक और मंगेशकर परिवार के करीबी दोस्त मास्टर विनायक (विनायक दामोदर कर्नाटकी) ने उनके परिवार के देखभाल की ज़िम्मेदारी को निभाया। उन्होंने लता को एक गायक और अभिनेत्री के रूप में अपना काम शुरू करने में मददगार की भूमिका निभाई।

लता ने “नाचू या गाड़े, खेलो सारी मणि हौस भारी” गीत गाया था, जिसे सदाशिवराव नेवरेकर ने वसंत जोगलेकर की मराठी फिल्म किटी हसाल (1942) के लिए संगीतबद्ध किया था, लेकिन उस गीत को अंतिम कट से हटा दिया गया था। विनायक ने उन्हें नवयुग चित्रपट की मराठी फिल्म पहिली ‘मंगला-गौर’ (1942) में एक छोटी भूमिका दी, जिसमें उन्होंने “नताली चैत्रची नवलई” गाया, जिसे दादा चंदेकर ने संगीतबद्ध किया था। उन्होंने मराठी फिल्म गजभाऊ (1943) के लिए उनका पहला हिंदी गीत “माता एक सपूत की दुनिया बदल दे तू” गाया था।

जब मास्टर विनायक की कंपनी ने अपना मुख्यालय 1945 में मुंबई स्थानांतरित कर दिया तब लता भी मुंबई पहुँच गईं। उन्होंने भिंडीबाजार घराने के उस्ताद अमन अली खान से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेनी शुरू की। उन्होंने वसंत जोगलेकर की हिंदी भाषा की फिल्म ‘आप की सेवा में’ (1946) के लिए “पा लगून कर जोरी” गाया, जिसे दत्ता दावजेकर ने संगीतबद्ध किया था। फिल्म में नृत्य रोहिणी भाटे ने किया था जो बाद में एक प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना बनीं। लता और उनकी बहन आशा ने विनायक की पहली हिंदी भाषा की फिल्म ‘बड़ी माँ’ (1945) में छोटी भूमिकाएँ निभाईं। उस फिल्म में, लता ने एक भजन “माता तेरे चरणों में” भी गाया था। विनायक की दूसरी हिंदी भाषा की फिल्म ‘सुभद्रा’ (1946) की रिकॉर्डिंग के दौरान उनका संगीत निर्देशक वसंत देसाई से परिचय हुआ।

अभिनेत्री के रूप में उनकी पहली फ़िल्म ‘पाहिली मंगलागौर’ (1942) रही, जिसमें उन्होंने स्नेहप्रभा प्रधान की छोटी बहन की भूमिका निभाई। बाद में उन्होंने कई फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमें, माझे बाल, चिमुकला संसार (1943), गजभाऊ (1944), बड़ी माँ (1945), जीवन यात्रा (1946), माँद (1948), छत्रपति शिवाजी (1952) शामिल थी। बड़ी माँ, में लता ने नूरजहाँ के साथ अभिनय किया और उसके छोटी बहन की भूमिका आशा भोंसले ने निभाई। उन्होंने खुद की भूमिका के लिये गाने भी गाये और आशा के लिये पार्श्वगायन किया।

1945 में उस्ताद ग़ुलाम हैदर (जिन्होंने पहले नूरजहाँ की खोज की थी) अपनी आनेवाली फ़िल्म के लिये लता को एक निर्माता के स्टूडियो ले गये। फ़िल्म में कामिनी कौशल मुख्य भूमिका निभा रही थी। वे चाहते थे कि लता उस फ़िल्म के लिये पार्श्वगायन करे। लेकिन गुलाम हैदर को निराशा हाथ लगी। 1947 में वसंत जोगलेकर ने अपनी फ़िल्म आपकी सेवा में लता को गाने का मौका दिया। इस फ़िल्म के गानों से लता की खूब चर्चा हुई। इसके बाद लता ने मज़बूर फ़िल्म के गानों “अंग्रेजी छोरा चला गया” और “दिल मेरा तोड़ा हाय मुझे कहीं का न छोड़ा तेरे प्यार ने” जैसे गानों से अपनी स्थिती सुदृढ की। हालाँकि इसके बावज़ूद लता को उस खास हिट की अभी भी तलाश थी।

1949 में लता को ऐसा मौका फ़िल्म “महल” के “आयेगा आनेवाला” गीत से मिला। इस गीत को उस समय की सबसे खूबसूरत और चर्चित अभिनेत्री मधुबाला पर फ़िल्माया गया था। यह फ़िल्म अत्यंत सफल रही थी और लता तथा मधुबाला दोनों के लिये मील का पत्थर सिद्ध हुई। इसके बाद लता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज वो चली गईं।

हाड़ जले लकड़ी जले, जले जलावन हार ।
कौतिकहारा भी जले, कासों करूं पुकार ॥

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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