श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा “एक कप कॉफ़ी…” ।)
☆ तन्मय साहित्य #250 ☆
☆ एक कप कॉफ़ी… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
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कवितापाठ के आयोजनोपरांत उपस्थित कई व्यक्तियों से माधुरी की कविताओं के लिए उसे बधाईयाँ मिलने लगी।
इन्हीं में सोशल मीडिया की सुर्खियों में रहने वाले बहुचर्चित कवि विदेह जी ने भी प्रशंसा करते हुए माधुरी से अगले एक आयोजन में शिरकत करने के बहाने फोन नंबर माँगा
अपनी प्रशंसा से अभिभूत माधुरी ने भी सहज भाव से उन्हें अपना नंबर दे दिया।
सहेली उर्मि ने फोन नंबर देने पर चिंता जताते हुए माधुरी को सचेत किया कि, “इस व्यक्ति से बच के रहना, महिलाओं के बारे में इसकी सोच ठीक नहीं है।”
अभी घर पहुँची ही थी कि, मोबाइल की घंटी बज उठी—-
“हेलो- मैं विदेह बोल रहा हूँ, माधुरी जी, क्या बताऊँ, मैं तो अभी तक आपकी कविताओं में डूबा हूँ… अद्भुत, बहुत सुंदर लिखती हैं आप, और इन्हें प्रस्तुत करने का आपका अंदाज और भी अधिक प्यारा है। सच कहूँ तो इन कविताओं जैसे ही बल्कि इनसे कहीं अधिक सुंदरता प्रभु ने आपको प्रदान की है।”
“जी, शुक्रिया विदेह जी।”
“शुक्रिया से काम नहीं चलेगा माधुरी जी, कभी हमारे साथ बैठकर एक कप कॉफ़ी पीने का सौभाग्य देना होगा आप को।”
“जी, आइए घर पर आपका स्वागत है, इसी बहाने आप मेरे परिवार से भी मिल लेंगे।”
“माधुरी जी! अब हमारे और कॉफ़ी के बीच में परिवार कहाँ से आ गया?”
“पर मेरी जानकारी के अनुसार तो आप भी चाय-काफ़ी सहित अच्छी-खासी घर गृहस्थी वाले इंसान हैं!”
“तो उससे क्या फर्क पड़ता है माधुरी जी?”
“फर्क पड़ता है आदरणीय! क्या आप ये बताएँगे कि, आपकी पत्नी घर में आपको कॉफ़ी पीने का अवसर नहीं देती या फिर, — वे सुंदर नहीं है?”
“नहीं, ऐसी बात नहीं, वो– वो ऐसा है कि”…..
“कि, अब आपको अपनी पत्नी में दूसरी स्त्रियों जैसी सुंदरता नजर नहीं आती है !”
“आप मुझे गलत समझ रही हैं, मेरा आशय यह नहीं था”
“आशय मैं अच्छी तरह से समझ रही हूँ आपका महोदय !”
” विदेह जी, जैसे आपको घर से बाहर सुंदरता दिख रही है, वैसे ही बाहर वाले यदि आपकी पत्नी में भी सुंदरता देखने लग गये तो?”
“ये क्या बकवास करने लगी आप?”
“क्यों……? लगी न चोट जब पत्नी पर आई तो।”
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈