प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “माँ दरशन की अभिलाषा ले हम द्वार तुम्हारे आये हैं…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा # 197 ☆ माँ दरशन की अभिलाषा ले हम द्वार तुम्हारे आये हैं… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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माँ दरशन की अभिलाषा ले हम द्वार तुम्हारे आये हैं
एक झलक ज्योती की पाने सपने ये नैन सजाये हैं
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पूजा की रीति विधानों का माता है हमको ज्ञान नही
पाने को तुम्हारी कृपादृष्टि के सिवा दूसरा ध्यान नहीं
फल चंदन माला धूप दीप से पूजन थाल सजाये हैं
दरबार तुम्हारे आये हैं, मां द्वार तुम्हारे आये हैं
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जीवन जंजालों में उलझा, मन द्विविधा में अकुलाता है
भटका है भूल भुलैया में निर्णय नसही कर पाता है
मां आँचल की छाया दो हमको, हम माया में भरमाये हैं
दरबार तुम्हारे आये हैं, हम द्वार तुम्हारे आये हैं
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जिनका न सहारा कोई माँ, उनका तुम एक सहारा हो
दुखिया मन का दुख दूर करो, सुखमय संसार हमारा हो
आशीष दो मां उन भक्तों को जो, तुम से आश लगाये हैं
दरबार तुम्हारे आये हैं, सब द्वार तुम्हारे आये हैं
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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