श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “तेरे दरबार में…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 194 ☆

☆ # “तेरे दरबार में…” # ☆

तेरे दरबार में दुहाई है

मेरी मजबूरी खींच लाई है

 

संगी साथी सब छूट गये हैं  

मेरे अपने सब रूठ गये हैं

जो कमाये थे मैंने अब तक

वो खनकते सिक्के सब लुट गये हैं

तुझे जगाने आवाज़ लगाई है

तेरे दरबार में दुहाई है

 

मेरी आंखों के तारे खो गये हैं

भीड़ में किसी के हो गये हैं

मेरी बगिया वीरान हो गई है

मेरे कुचले अरमान सो गये हैं

तेरी शक्ति ने आस बंधाई है

तेरे दरबार में दुहाई है

 

गरीबी नाइलाज मर्ज है

दुनिया बड़ी खुदगर्ज है

ज़ख्मों पर नमक छिड़कती है

रोते-रोते यह मेरी अर्ज है

तूने लाखों की बिगड़ी बनाई है

तेरे दरबार में दुहाई है

 

क्षमा कर दे तू मेरे अवगुण

होंठ गुनगुना रहे हैं तेरी ही धुन

अश्रुओं को चढ़ाने आया हूं

मोतियों को लाया हूं चुन-चुन

अरमानों की माला पिरोकर चढ़ाई है

तेरे दरबार में दुहाई है

मेरी मजबूरी खींच लाई है  /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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