श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “इमेज ।)

?अभी अभी # 495 ⇒ ॥ इमेज ॥ ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

आप इसे छवि कहें, तस्वीर कहें, इज्जत कहें, रुतबा कहें, रेपुटेशन कहें, चरित्र कहें, जो कहना चाहते हैं कहें, इससे आपकी इमेज अच्छी ही होगी। केवल जिनको अपनी इज्जत की चिंता नहीं, बाल बच्चों का खयाल नहीं, खानदान की फ़िक्र नहीं, ऐसे लोगों की बात छोड़िए।

हर इंसान चाहता है, वह कैसा भी हो, उसकी इमेज उससे भी अच्छी हो। इसलिए कई बार उसको नकली चेहरा सामने लाना पड़ता है, और अपनी असली सूरत को छुपानी पड़ती है लेकिन साहिर साहब उनके बारे में तपाक से लिख मारते हैं ;

क्या मिलिए, ऐसे लोगों से

जिनकी फितरत छुपी रहे।

नकली चेहरा सामने आए

असली सूरत छुपी रहे।।

कुछ लोग यह भांप भी लेते हैं, और तारीफ़ की आड़ में कह भी देते हैं, जो बात तुझ में है, तस्वीर में नहीं, तो कहीं इसका विपरीत भी नजर आता है। सोशल मीडिया हो या सामाजिक प्लेटफॉर्म, जो छवि हमारी प्रस्तुत की जाती है, हम क्या वाकई वैसे ही होते हैं। अपना एक अच्छा सा फोटो भिजवा देना। कम से कम फोटो तो ढंग का हो इंसान का।

फेसबुक पर पिछले कई वर्षों से मेरा एक ही फोटो चल रहा है। कुछ लोग फेसबुक और व्हाट्स एप पर अपनी तस्वीर के बजाय किसी भगवान की तस्वीर लगा देते हैं अथवा परिवार के किसी अन्य प्रिय सदस्य की। बिना चेहरे के किसी को जानने की कोई रीत हो, तो कोई हमें भी बताए।।

कुछ लोगों के चेहरे हमें मुग्ध कर देते हैं तो कुछ के चेहरे उन्हें ही आत्म मुग्ध किया करते हैं। अच्छा चेहरा तारीफ का मोहताज नहीं होता। लेकिन अपनी तारीफ किसे अच्छी नहीं लगती। बहुत कम सुंदर चेहरे ऐसे होते हैं, जिनकी तारीफ करो, और वे बुरा मान जाएं। हां, ऐसे कई चेहरे ज़रूर हैं, जिनकी तारीफ ना की जाए, तो वे बुरा मान जाते हैं।

मैं अपनी इमेज के बारे में बहुत सजग हूं। कॉलेज का एक वाकया है। मेरे एक मित्र के साथ कॉलेज के फ्री पीरियड में टहल रहे थे। इतने में अनिता नाम की एक लड़की सामने से निकली। मेरे दोस्त ने उसे सुनाते हुए मुझसे पूछा, क्यों तुमने अनिता फिल्म देखी है। इसमें क्या गलत था, मुझे नहीं मालूम। लेकिन मैं यह सोचता रह गया, यह लड़की मेरे बारे में क्या सोचेगी। मैं कैसे लोगों के साथ उठता बैठता हूं। जब कि वास्तविकता यह थी कि वह लड़की मुझे जानती तक नहीं थी। मनोविज्ञान में इसे अपराध बोध कहते हैं। और मेरे दोस्त ने जो लड़की पर कमेंट किया वह क्या था, मैं समझ नहीं पाया। लेकिन वह शायद eve teasing की शुरुआत हो।।

जो समाज में अपनी अच्छी छवि बनाना चाहते हैं, उन्हें दिखावा करना पड़ता है। दया, धर्म, दान, पुण्य और चैरिटी के अलावा भी कई तरीके हैं अच्छा दिखाई देने के। कुछ लोग जैसे हैं, वैसे ही रहते हैं। उनके व्यवहार में कृत्रिमता की जगह सहजता होती है। जो बात उन्हें पसंद नहीं आती, मुंह पर बोल देते हैं। ऐसे लोग स्पष्टवादी कहलाते हैं।

सच्चे झूठे की पहचान चेहरे से कहां हो पाती है। इसीलिए कहा भी गया है ;

दिल को देखो, चेहरा न देखो,

चेहरे ने लाखों को लूटा

दिल सच्चा और चेहरा झूठा।

हर सूरत के पीछे एक सीरत भी है। सु अच्छा को कहते हैं, शायद इसीलिए हमें किसी की सूरत अच्छी लगती है। जो छुपा हुआ है, उसको देखना, सीरत है। चेहरे के अलावा, दिल के अलावा विचार भी एक कसौटी होती है, इंसान को परखने की। सूरत अगर प्रदर्शन है तो विचार दर्शन। एक बार विचार मेल खा गए, तो फिर मन का मैल भी साफ हो जाता है।

लोग अपनी बुराई छुपाए रखते हैं, अच्छाई का प्रदर्शन किया करते हैं। काश हम अपनी अच्छाई छुपाएं और बुराई को बाहर आने दें। क्यों न हम जीवन में अच्छाई का स्वागत करें और बुराई को बाहर का रास्ता दिखाएं। जैसे हैं, वैसे दिखें। और जैसा दिखना चाहते हैं, वैसे ही बनें।।

हम कितनी भी अपनी अक्ल लगा लें, मेज और इमेज के चक्कर में पड़े रहें, किसी की शक्ल ही ऐसी होती है कि दिल कह उठता है ;

कुछ ऐसी प्यारी शक्ल

मेरी दिलरुबा की है।

जो देखता है कहता है

कुदरत खुदा की है।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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