प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “हे सिंहवाहिनी, शक्तिशालिनी, कष्टहारिणी माँ दुर्गे…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा # 198 ☆ हे सिंहवाहिनी, शक्तिशालिनी, कष्टहारिणी माँ दुर्गे… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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हे सिंहवाहिनी, शक्तिशालिनी, कष्टहारिणी माँ दुर्गे
महिषासुर मर्दिनि, भव भय भंजनि, शक्तिदायिनी माँ दुर्गे
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तुम निर्बल की रक्षक, भक्तों का बल विश्वास बढ़ाती हो
दुष्टो पर बल से विजय प्राप्त करने का पाठ पढ़ाती हो
हे जगजननी, रणचण्डी, रण में शत्रुनाशिनी माँ दुर्गे
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जग के कण कण में महाशक्ति की व्याप्त अमर तुम चिनगारी
दृढ़ निश्चय की निर्भय प्रतिमा, जिससे डरते अत्याचारी
हे शक्ति स्वरूपा, विश्ववन्द्य, कालिका, मानिनि माँ दुर्गे
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तुम परब्रम्ह की परम ज्योति, दुष्टो से जग की त्राता हो
पर भावुक भक्तो की कल्याणी परंवत्सला माता हो
निशिचर विदारिणी, जग विहारिणि, स्नेहदायिनी माँ दुर्गे .
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈