श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतिका “चलो एक दीप जलाएँ…” ।)
☆ तन्मय साहित्य #252 ☆
☆ चलो एक दीप जलाएँ… 🏮 ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
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चलो!इक दीप जलायें, कि दिवाली आई
और मीठे स्वयं हो जाएँ, दिवाली आई।
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जो हमें कल तलक पसंद नहीं थे, उनको
देख कर आज मुस्कुरायें, दिवाली आई।
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किसी गरीब के घर में, जला आयें दीपक
किसी रोगी को दें दवाएँ, दिवाली आई।
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दूध से भर दें कटोरी,अनाथ शिशुओं की
जो हैं निर्धन उन्हें पढ़ायें, दिवाली आई।
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भ्रष्ट, बेइमान, घूस खोर, चापलूसों को
सीख सब को सही सिखायें, दिवाली आई।
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जो कर रहे हैं मिलावट, सबक उन्हें यूँ दें
साथ रावण के जलायें, तो दिवाली आई।
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ये जो आतंकी हैं,पनाह उनको जिनकी है
सब को बारूद से उड़ायें, दिवाली आई।
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अपने वेतन जो बढ़ा लें, स्वयं ही संसद में
उन्हें सड़कों पे फिर से लायें, दिवाली आई
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फुलझड़ी औ’ अनार से, खिले-खिले हों सब
गीत समता के सुनायें तो, दिवाली आई।
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हो के तन्मय जो मन को साधने में होंगे सफल
पायें संतोष धन तो सच में, दिवाली आई।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈