सुश्री इन्दिरा किसलय
☆ कविता ☆ कोहरा… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆
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धूप की राहें रोक रखी हैं
कहते हैं भीषण कोहरा है।
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चाँद छुएंगे एक ही रट है
फलक पे कब कोई ठहरा है।
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पाँव थमे तो रुकी जिन्दगी
इसका अर्थ बड़ा ही गहरा है।
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साधू की कुटिया के आगे
गुंडों मुस्टंडों का पहरा है।
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मूरत का कद ऊँचा कर लो
आदम तो बौना बहरा है ।
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रावण को रावण फूँक रहा
कहते हैं यही दशहरा है ।
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© सुश्री इंदिरा किसलय
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈