श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सत्य-असत्य और आम आदमी…”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 195 ☆
☆ # “सत्य-असत्य और आम आदमी…” # ☆
सत्य और असत्य के द्वंद में
आम आदमी पिसता है
सदियों के इस जंग में
आम आदमी पिसता है
दुनिया के पुराने ढंग में
आम आदमी पिसता है
हर घड़ी बदलते हुए रंग में
आम आदमी पिसता है
उस के लिए
सत्य क्या है ?
उसके लिए
असत्य क्या है ?
सत्य है –
रोजमर्रा की कठिनाई
बढ़ती हुई मंहगाई
बच्चों की पढ़ाई
बीमार पत्नी की दवाई
सर पर आवारा छत
जीवन की होती हुई गत
कौड़ी के मोल बिकते हुए मत
बस्ती की दारू की लत
भूख मिटाने के लिए रोटी
परिवार बड़ा, कमाई छोटी
न्याय पाने की उम्मीद खोटी
शरीर पर बची सिर्फ लंगोटी
हर पल संघर्ष में बीता है
हर बार हारा कब जीता है
हर बार कड़वे घूंट पीता है
उसका जीवन जलती हुई चिता है
उसके लिए असत्य है –
मन लुभावने वादे
झूठे पाखंड भरे इरादे
दिखते सीधे सादे
कोई वादा तो निभादे
सुनहरे रंगीन सपने
अब दिन बदलेंगे अपने
ख्वाब लगे है पकने
खुशी में माला लगे है जपने
भेदभाव मिटा देंगे
ऊंच-नीच हटा देंगे
वैमनस्य घटा देंगे
सीने से सटा देंगे
न्याय सुलभ सस्ता होगा
हर चेहरा हंसता होगा
हृदय में इश्वर बसता होगा
जीवन खुशीयों का गुलदस्ता होगा
हर हाथ को मिलेगा काम
कोई नहीं होगा नाकाम
भूखमरी का नही होगा नाम
रोटी का होगा इंतजाम
आम आदमी जिसे चाहें चुन लें
वो सब सिर्फ जुमले है
दिखावें की सब बातें है
यथार्थ में सब धुंधले है
इसलिए आम आदमी
सत्य असत्य के
फेर में नहीं पड़ता है
ना ही भविष्य के लिए
लक्ष्य गढ़ता है
जीवन भर जो पाता है
उसे अपना नसीब समझ
उसे पाने के लिए लड़ता है /
© श्याम खापर्डे
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈