श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित हृदयस्पर्शी लघुकथा “डोर बेल”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 210 ☆
🌻लघु कथा🌻 डोर बेल🌻
बचपन सभी का बहुत प्यारा होता है। बचपन की यादें सारी जिंदगी जीने का मकसद बन जाती है।
किसी का बचपन संवर कर अच्छा किसी का बहुत अच्छा और किसी का स्वर्णिम बन जाता है। परन्तु कुछ का बचपन एक किस्सा बन जाता है।
मिट्टी का घरौंदा धीरे- धीरे घर बना। और रहने लगा एक परिवार। मासूम सी बिटिया अपने छोटे भाई और माँ पिताजी के साथ।
पिता जी बड़े प्यार से बिटिया को डोरबेल बुलाते थे, क्योंकि बाहर से आने के पहले ही वह दरवाजे पर खड़ी मिलती थी।
ठंड अपने पूर्ण जोश से दस्तक दे रही थी। रात पाली काम करके आज पिता जी लौटे। उनके हाथ एक खुबसुरत रंगबिरंगा कंबल था।
आज डोर बेल दरवाजे पर नही आई। माँ ने कहा शायद ठंड की वजह से सिमटी पडी सो रही है। पिताजी डोरबेल के पास पहुंचे। पर यह क्या???
डोर बेल तो ठंड से अकड गई थी। तुरंत दौड़ कर सरकारी अस्पताल ले जाया गया। जहाँ डा. ने कहा कि देर हो गई।
पिता जी कंबल में लपेटे डोरबेल को ले जा रहे थे। कानों में उसकी घंटी बजी – – – पिता जी डोर बेल टूट गई।
चौक के पास एनाउंसमेंट नेताओं का हो रहा था। सभी को कंबल बाँटा जा रहा है। अपना आधार कार्ड दिखा कर कंबल लेते जाए।
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈