श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय बालकथा – “जादू से उबला दूध”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 194 ☆
☆ बाल कथा – जादू से उबला दूध ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
“आओ रमेश,” विकास ने रमेश को बुलाते हुए कहा, “मैं जादू से दूध उबाल रहा हूँ। तुम भी देख लो।”
“हाँ, क्यों नहीं?, मैं भी तो देखें कि जादू से दूध कैसे उबाला जाता है?” रमेश ने बैठते हुए कहा।
” भाइयों, आपसे मेरा एक निवेदन है कि आप लोग मैं जिधर देखूँ उधर मत देखना। इस से जादू का असर चला जायेगा और आकाश से आने वाली बिजली से यह दूध गरम नहीं होगा।” विकास ने कहा और एक कटोरी में बोतल से दूध उँडेल दिया।
“अब मैं मंत्र पढूँगा। आप लोग इस दूध की कटोरी की ओर देखना।” यह कहकर विकास ने आसमान की ओर मुँह करके अपना एक हाथ आकाश की और बढ़ाया, ” ऐ मेरे हुक्म की गुलाम बिजली! चल जल्दी आ! और इस दूध की कटोरी में उतर जा।”
विकास एक दो बार हाथ को झटक कर दूध की कटोरी के पास लाया, “झट आ जा। लो वो आई,” कहने के साथ विकास ने दूध की कटोरी की ओर निगाहें डाली। उस दूध की कटोरी में गरमागरम भाप उठ रही थी। देखते ही देखते वह दूध उबलने लगा। विकास ने दूध की कटोरी उठा कर दो चार दोस्तों को छूने के लिए हाथ में दी, ” देख लो, यह दूध गरम है?”
“हाँ,” नीतिन ने कहा, “मैंने पहले भी कटोरी को छू कर देखा था। वह ठंडी थी और दूध भी ठंड था।”
अब विकास ने कटोरी का दूध बाहर फेंक दिया। तब बोला, ” यह दूध जादू से नहीं उबला था।”
“फिर?” रमेश ने पूछा।
“मैं ने मंतर पढ़ने और बिजली को बुलाने के लिए ढोंग के बहाने इस दूध में चूने का डल्ला डाल दिया था। इससे दूध गरम हो कर उबलने लगा। यह कोई जादू नहीं है।”
“यह एक रासायनिक क्रिया है इसमें चूना दूध में उपस्थित पानी से क्रिया करके ऊष्मा उत्पन्न करता है। जिससे दूध गरम हो कर उबलने लगता है।” विकास ने यह कहा तो सबने तालियां बजा दी।
“लेकिन ऐसे दूध को खानेपीने में उपयोग न करें दोस्तों!” विकास ने सचेत किया।
© श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
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