श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 152 – मनोज के दोहे ☆
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रहा जगत में सत्य ही, हुआ झूठ का अंत।
वेद पुराणों में लिखा, कहते ऋषि मुनि संत।।
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जीवन अद्भुत मंच है, भिन्न-भिन्न हैं पात्र।
अभिनय अपना कर रहे, बने सभी हैं छात्र।।
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कठपुतली मानव हुआ, डोर ईश के हाथ।
कब रूठे सँग छोड़ दे, यह नश्वर तन साथ।।
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जीवन तक ही साथ है, बँधी स्वाँस की डोर।
जितना जीभर जी सको, होती नित है भोर।।
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मन बहलाने के लिए, दिया खिलौना साथ।
टूटे फिर हम रो दिए, बैठ पकड़ कर माथ।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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