श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – फुर्सत।)
☆ लघुकथा # 48 – फुर्सत ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆
आज सुबह से कमल जी गुस्से में बड़बड़ाये जा रही थी । आजकल जाने क्या हो गया है बहू बेटे और मेरी अपनी बेटी को भी मेरे लिए समय नहीं है?
दिन भर सब घूमते फिरते हैं पर मुझे अपने साथ नहीं ले जाते?
मेरे बहू बेटे तो दिन भर मशीन की तरह पैसे कमाने में लगे हैं। बच्चों को हॉस्टल भेज दिया है मेरे लिए कोई सोचता ही नहीं कि मैं क्या करूं?
क्या हुआ माँ आओ चाय पी लो?
क्यों आज महारानी चाय नहीं बनाएगी?
एक काम तो करती थी वह भी नहीं होगा?
नहीं मां आज उसे ऑफिस जल्दी जाना था। प्रोग्राम है, वह चली गई रात में आएगी और आज खाने वाली भी नहीं आ रही है काम वालों की छुट्टी है तो तुम्हारे लिए खाना कुछ आर्डर कर दूं या कुछ बना दूं?
मैं ऑफिस में खा लूंगा।
नहीं नहीं तू रहने दे?
तुम्हारे साथ चलती हूं मुझे अपनी मौसी के घर में छोड़ दे आज हम दोनों बहन खूब घूमेंगे और बातें करेंगे।
ठीक है पर विमला मौसी को फोन तो कर दो?
यह तुम लोग करते हो फोन करना?
फोन में आरती पूजा कर लेना? हम अपनी बहन से मिलेंगे तो क्या वह भगा देगी?
ठीक है अच्छा जल्दी तैयार हो।
अगर कोई दिक्कत होगी तो मां मुझे फोन करना मैं शाम को तुम्हें वहाँ से ले लूंगा।
विमल खाने बनाने में लगी रहती है वह कहती है कि चल बाहर जो पहाड़ी पर शिवजी का मंदिर है आज वही चलते है। बाजार भी चलेंगे बहुत दिन हो गया साड़ी खरीदें ।
दीदी खाना बना रही हूं अभी बच्चे स्कूल से आ रहे होंगे पहले अपने बच्चों को संभाला अब नाती को संभालती हूं। तुम्हारी बहू श्वेता तो बिटिया की तरह ही है, कितना ध्यान देती है पर सब की किस्मत ऐसी कहां?
ठीक है तू भी अपनी किस्मत सुधार लें मेरे घर 2 दिन रह? घर काटने को दौड़ता है।
तुम तो बचपन से ही ऐसी हो।
मन तो मेरा भी बहुत करता है।
क्या हो गया बड़ी मौसी आते ही मेरी बुराई शुरू कर दी?
नहीं नहीं बेटा कमल जी ने कहा- आज हम सोच रहे थे कि हम सभी मिलकर घूमने चलते हैं पहाड़ी वाले मंदिर।
मौसी आप बुढ़िया लोगों के साथ में मंदिर जाकर क्या करूंगी? माल या कहीं और चलती तो जरूर चलती।
आपके पास काम धंधे हैं नहीं फुर्सत में हो मेरी भी सास को तुम अपने जैसी बिगाड़ दोगी।
तुम दोनों को वृद्ध आश्रम भेजना पड़ेगा।
देख मैं अपनी बहन को लेकर जा रही हूं और तू इस तरह मुझे ताने मत सुना। हम तुम्हारी सास हैं। जैसे तुम लोगों को फुर्सत में टाइम चाहिए। ऐसे हमें भी तुमसे फुर्सत चाहिए तू अपनी सास की चिंता मत कर अब अपना घर संभाल…।
© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈