सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – आहत स्वप्न हुए सारे हैं…।
रचना संसार # 29 – गीत – आहत स्वप्न हुए सारे हैं… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(मात्रा भार 16/14)
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सन्नाटा गलियों में पसरा,
बाँध धैर्य का टूट गया।
सकल विश्व में संकट छाया,
देख लुटेरा लूट गया।।
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गंगा तट लाशों का डेरा,
पड़ी भँवर जीवन नैया।
सस्ती देखो मौत हुई है,
छिपे कहाँ थाम खिवैया।।
धीरज अब पंथी ने खोया,
सारा तन ये कूट गया।।
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नित्य हलाहल धरती पीती,
नील गगन खामोश खड़ा।
जीवन राग द्वेष में बीता,
पिँजरे में तन कैद पड़ा।।
बैठे किस्मत को कोसें सब,
घड़ा पाप का फूट गया।
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आज सृजन भी मौन हुआ है,
भाव शब्द का रूठ रहा।
मानवता की बात करो मत,
हरा वृक्ष भी ठूँठ कहा।।
बना शिकारी देख मनुज है,
सँग अपनों का छूट गया।
*
आहत स्वप्न हुए सारे हैं,
अपनों ने हैं घाव दिए ।
घोर तिमिर की छाया है अब,
उजियारे हैं होंठ सिए।।
टूटी हर मर्यादाएँ अब,
छोड़ धरा रँगरूट गया।।
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© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
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