श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 154 – सजल – एक-एक कर बिछुड़े अपने ☆

 *जीवंत, सरोजिनी, पहचान, अपनत्व, अथाह।

 

सुख-दुख में हँस मुख *रहें,जीना है जीवंत

कर्म सुधा का पान कर, अमर बनें श्रीमंत।।

 **

मन सरोजिनी सा खिले, दिखे रूप लावण्य।

मोहक छवि अंतस बसे, प्रेमालय का पुण्य।।

 *

सतकर्मों से ही बनें ,मानव की पहचान

दुष्कर्मों के भाव से, रावण होता जान।।

 *

जीवन में अपनत्व का, जिंदा रखिए भाव।

प्रियतम के दिल में बसें, डूबे कभी न नाव।।

प्रेम सिंधु में डूब कर, नैया लगती पार।

दुख-अथाह, जीवन-खरा, प्रभु का कर आभार।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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