सुश्री प्रभा सोनवणे
कविता
☆ सजन… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆
(डमरू घनाक्षरी)
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तरसत मन अब, सजन जलत मन
असफल हर पल, पवन करत छल ।।
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डगर डगर पर, सहज नजर धर
इधर उधर सब, बहत नयन जल ॥
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जहर अधर पर, कहत कपट कर
दरस हरस कब, भटकत जल थल ॥
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बहकत पग अब, खबर नगर भर
सरस सबल मन, पनघट पर चल ॥
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© प्रभा सोनवणे
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