श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “मेरा आत्मसम्मान चाहिए…”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 200 ☆
☆ # “मेरा आत्मसम्मान चाहिए…” # ☆
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इस पल पल बदलती दुनिया में
मुझे आत्म गौरव, मान चाहिए
मुझे जीने के लिए बस
मेरा आत्मसम्मान चाहिए
कब तक जिएगा कोई
बैसाखियों के सहारे
वो हर बार ही जीते
हम हर बार ही हारे
चौसठ खानों की बिसात पर
शतरंज तुम्हारी, मोहरे भी तुम्हारे
इस शह और मात की बाजी में
सच्चाई और इमान चाहिए
मुझे जीने के लिए बस
मेरा आत्मसम्मान चाहिए
कितने उद्दंड है
बहते हुए धारे
डुबोने बेचैन है
कश्ती को हमारे
कश्ती भले ही जीर्ण हो
हममें जुनून है
पहुंचा ही देंगे
हम कश्ती को किनारे
दरिया के पानी में
बस एक तूफान चाहिए
मुझे जीने के लिए बस
मेरा आत्मसम्मान चाहिए
यह कैसा पाखंड है
हम बट रहे खंड खंड है
यह किस गुनाह का
मिल रहा दंड है
वहशी हवाओं में
वेग प्रचंड है
इस प्रलय को रोक सके
ऐसा एक इन्सान चाहिए
मुझे जीने के लिए बस
मेरा आत्मसम्मान चाहिए /
कविता
” जीवन चक्र “
जीने के लिए हम
क्या क्या नहीं करते हैं
रोज जीते हैं
रोज मरते हैं
दो जून की रोटी के लिए
क्या क्या नहीं करते हैं
चाहे दिन हो या रात
ठंड हो, गर्मी हो
या हो बरसात
किसी भी मौसम में
खुद की परवाह नहीं करते हैं
सुबह घर से निकलते हैं
दौड़ लगाते हैं
भीड़ का हिस्सा
बन जाते हैं
परिश्रम करते हैं
पसीना बहाते हैं
तब –
दो रोटी का
परिवार के लिए
इंतजाम हो पाता है
कुछ पल के लिए
आदमी सो पाता है
रोज अपने परिवार
की जरूरते
जो अनंत हैं
पर जरूरी हैं
उसे पूरा करना
हर शख्स की
मजबूरी है
यह ऐसी जंग है
जिसका अलग ही रंग है
इससे हर कोई लड़ता है
एक एक कदम
आगे बढ़ता है
किसी के भाग्य का
सितारा चमकता है
तो वो नया इतिहास
गढ़ता है
और कोई
हर रोज संघर्ष करता है
पर निराश है
बेकारी, भूख , गरीबी
उसके पास है
झूठे वादे
अंधविश्वास ही
उसको रास है
वो जीवित तो है पर
एक जिंदा लाश है
जो तूफानों से टकराता है
आंधियों से नहीं घबराता है
वो भवसागर पार
कर जाता है
और
जो डरता है
हिम्मत हारता है
वो टूटकर
बिखर जाता है
जीवन चक्र में
अनजाना सा
मर जाता है
यही जीवन का
अकाट्य सत्य है/
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© श्याम खापर्डे
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