डॉ प्रेरणा उबाळे
☆ कविता – जीत की मशाल… ☆ डॉ प्रेरणा उबाळे ☆
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जीत की मशाल हूँ मैं
जीत की मशाल हूँ
*
तप्त ज्वाला जगा दें
अभिशप्त को मार दें
भीगी क्यों तेरी मशाल रे
जीत की मशाल हूँ मैं
*
चमका दो शिखर तरू
काट दे जहर को तू
भीगी क्यों तेरी मशाल रे
जीत की मशाल हूँ मैं
*
मृदंग-सा ताल पकड़
सृजन का आगाज कर
भीगी क्यों तेरी मशाल रे
जीत की मशाल हूँ मैं
*
ठिठकना तू छोड़ दें
लय, गति तेज कर दें
भीगी क्यों तेरी मशाल रे
जीत की मशाल हूँ मैं
*
स्वर्ण कडा पहन तू
बंद मुट्ठी खोल तू
भीगी क्यों तेरी मशाल रे
जीत की मशाल हूँ मैं
*
हाथ उठा आसमान तक
खींच ला सूरज भी अब
भीगी क्यों तेरी मशाल रे
जीत की मशाल हूँ मैं
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तिलक लगेगा माथे पर
सुनहरी होगी तेरी राह
जला ले पुनः मशाल अब
जीत की मशाल हूँ मैं
जीत की मशाल हूँ l
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© डॉ प्रेरणा उबाळे
रचनाकाल : 24 नवंबर 2024
सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत्त), शिवाजीनगर, पुणे ०५
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