डॉ प्रेरणा उबाळे
☆ कविता – विज्ञापन पर अभिनेता जी की मुस्कान देखी… ☆ डॉ प्रेरणा उबाळे ☆
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बस से गुज़रते, धक्के खाते
जगह मिली तो बैठ पाई
खिड़की से बाहर झाँका तो
विज्ञापन पर अभिनेता जी की मुस्कान देखी
*
रोते-भीख माँगते नंगधडग बच्चे देखे
नल पर नहाते, गाड़ी पोछते खिलौने देखे
फूलों को बेचते हमने कुछ फूल देखें
विज्ञापन पर अभिनेता जी की मुस्कान देखी
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साडी संवरकर चलती- भागती युवतियाँ देखी
काम के लिए दौड़ती, खिलती माँए देखी
अपना टिफिन खुद हँसकर बनाती महिलाएँ देखी
विज्ञापन पर अभिनेता जी की मुस्कान देखी
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कंडक्टर के टिकट फाड़ने की कला देखी
ड्राइवर की गाडी चलाने की भाषा देखी
यात्रियों के चढ़ने-उतरने में तंगी देखी
विज्ञापन पर अभिनेता जी की मुस्कान देखी
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नीतियों से त्रस्त बच्चों के लिए कमाते पिता देखे
मृत्यु के भय को छिपाते दादाजी देखें
नातिन की मुस्कान से मुस्काती नानी देखी
विज्ञापन पर अभिनेता जी की मुस्कान देखी
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चक्रव्यूह में फँसे सभी अभिमन्यू देखें
शरपंजर हो भी वचन निभाते भीष्म देखें
अभिनेता जी की मुस्कान में जिम्मेदारियों देखी
विज्ञापन पर अभिनेता जी की मुस्कान देखी l
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© डॉ प्रेरणा उबाळे
रचनाकाल : 27 नवंबर 2024
सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत्त), शिवाजीनगर, पुणे ०५
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