श्री आशीष कुमार
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे उनके स्थायी स्तम्भ “आशीष साहित्य”में उनकी पुस्तक पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है “मन की इन्द्रियों पर विजय”।)
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 17 ☆
☆ मन की इन्द्रियों पर विजय ☆
सबसे पहले इंद्रजीत ने लक्ष्मण की ओर वरुण पाश (पानी के देवता वरुण का फंदा) चलाया। यह किसी भी प्राणी को हवा में लटकाकर उसके प्राण हर सकता था, चाहे वह देवता, असुर या मानव कोई भी हो। इस अस्त्र के फंदे से बचना असंभव था, उत्तर में, लक्ष्मण ने कुम्भ अस्त्र का प्रयोग किया जो संग्रह पात्र की तरह कार्य करता था, और इंद्रजीत द्वारा वरुण पाश को कुम्भ अस्त्र ने अपने अंदर एकत्रित करना शुरू कर दिया और जल्द ही वरुण पाश आकाश में लुप्त हो गया ।
तब इंद्रजीत ने कंकालम अस्त्र चलाया यह एक भरी मूसल नुमा अस्त्र था इसका उत्तर लक्ष्मण ने धर्म पाश (अर्थ : सच्चाई का हथियार)से दिया ।
इंद्रजीत का क्रोध सभी असफल अस्त्रों के साथ बढ़ रहा था। क्रोध में इंद्रजीत ने लक्ष्मण की ओर त्रिशूल फेंक दिया, भगवान शिव का विनाशक अस्त्र । यह अचूक है और किसी के द्वारा रोका नहीं जा सकता है। इसे बिना किसी समानांतर के सबसे शक्तिशाली हथियार कहा जाता है । परन्तु जैसे ही यह इंद्रजीत के हाथ से त्रिशूल निकला, लक्ष्मण ने अपने दोनों हाथों को उसकी ओर जोड़ दिया, और त्रिशूल आकाश में उड़ गया और सीधे कैलाश गया, और भगवान शिव के बायीं ओर बर्फ की जमीन पर गड गया। बिना भगवान शिव की अनुमति के लक्ष्मण पर शक्ति का उपयोग किया गया था, जिससे शिव जी इंद्रजीत से नाराज थे तो ऐसा लगा की जैसे उनका त्रिशूल भी इंद्रजीत से नाराज है ।
त्रिशूल एक परंपरागत भारतीय हथियार है। यह एक हिन्दु चिन्ह की तरह भी प्रयुक्त होता है। यह एक तीन चोंच वाला धात्विक सिर का भाला या हथियार होता है, जो कि लकडी़ या बांस के डंडे पर भी लगा हो सकता है। यह हिन्दु भगवान शिव के हाथ में शोभा पाता है। यह शिव का सबसे प्रिय अस्त्र हैं शिव का त्रिशूल पवित्रता एवं शुभकर्म का प्रतीक है। इसके तीन सिरों के कई अर्थ लगाए जाते हैं: –यह त्रिगुण मयी सृष्टि का परिचायक है, –यह तीन गुण सत्व, रज, तम का परिचायक है
इन तीनों के बीच सांमजस्य बनाए बगैर सृष्टि का संचालन कठिन हैं, इसलिए शिव ने त्रिशूल रूप में इन तीनों गुणों को अपने हाथों में धारण किया। यह त्रिदेव का परिचायक है। भगवान शिव के त्रिशूल के बारे में कहा जाता है कि यह त्रिदेवों का सूचक है यानि ब्रम्हा, विष्णु, महेश के अनुसार ही इसे रचना, पालक और विनाश के रूप में देखा जाता है। इसे भूत, वर्तमान और भविष्य के साथ धऱती, स्वर्ग तथा पाताल का भी सूचक माना जाता हैं। यह दैहिक, दैविक एवं भौतिक ये तीन दुःख, के नाश के रूप में त्रिताप के रूप में जाना जाता है। यह हिन्दु देवी दुर्गा के हाथों में भी शोभा पाता है। खासकर उनके महिषासुर मर्दिनी रूप में, वे इससे महिषासुर राक्षस को मारती हुई दिखाई देतीं हैं। विभिन्न देवी दुर्गा के मंदिरो की प्रतिमा में त्रिशूल सोने चाँदी या पीतल के देखे जा सकते हैं । मनुष्य शरीर में भी त्रिशूल, जहाँ तीन नाड़ियां मिलती हैं, उपस्थित है और यह ऊर्जा स्त्रोतों, इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना को दर्शाता है। सुषुम्ना जो कि मध्य में है, को सातवां चक्र और ऊर्जा का केंद्र कहा जाता है ।
अगर तत्त्वमीमाँसा की दृष्टि से देखे तो इंद्रजीत और लक्ष्मण के बीच का संग्राम क्या सूचित करता है ? इंद्रजीत अर्थात जिसने अपनी इन्द्रियों पर काबू पा लिया हो या जिसकी कर्म इन्द्रियाँ और ज्ञान इन्द्रियाँ भोग विलास की वस्तुओं को स्वीकार ना करती हो। ये दस, पाँच कर्म इन्द्रियाँ और पाँच ज्ञान इन्द्रियाँ वाह्य मुखी होती है पर एक आंतरिक इन्द्रिय भी होती है जिसे मन कहते है मन वह इन्द्रिय है जो मस्तिष्क में बाहरी वासनाओं के प्रति आने वाली पहली लहर की प्रतिक्रिया देता है । तो भले ही कोई मनुष्य दस बाहरी इन्द्रियों पर काबू कर ले तो भी उसकी वासनाएँ जीवित रहेंगी जब तक कि उसका मन संतुलित ना हो। दूसरी ओर लक्ष्मण का अर्थ है जिसका मन सदैव अपने लक्ष्य पर रहे और किसी भी वासना के प्रति तनिक भी ना डिगे। अगर मन स्थिर हो तो बाहरी इन्द्रियाँ आपने आप काबू में आ जाती है। तो इंद्रजीत की बाहरी इन्द्रियाँ भले ही उसके नियंत्रण में हो लकिन उसका मन लंका और उसके पिता के अहंकार की वासनाओं से जुड़ा हुआ था जबकि लक्ष्मण का मन सदैव भगवान राम की भक्ति में लगा था इसी लिए लक्ष्मण इंद्रजीत को मार पाए ।
© आशीष कुमार