श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी – एक बुंदेली गीत – भइया  उल्टी  चले  बयार आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 241 ☆

☆ एक बुंदेली गीत – भइया  उल्टी  चले  बयार☆ श्री संतोष नेमा ☆

कोऊ   नइयां  कोऊ  को यार।

भइया  उल्टी  चले  बयार।

धन – दौलत के पीछू भैया

छोड़  दए बापू  उर  मैया

भए   रिश्ते   सबै   बेकार

भइया  उल्टी  चले  बयार

दीनो – धर्म  बिसर खेँ  सारे,

बने   फिरें  ज्यूं हों मतवारे

कैसे  लग   है   नैया   पार

भइया  उल्टी  चले  बयार

पइसों  से पहचान रखत हैं।

 मन में लालच लोभ धरत हैं

आये  न कोनउं  उनके  द्वार।

भइया  उल्टी  चले   बयार

मतलब के सब रिश्ते – नाते

मतलब  सें  मीठे  बतियाते

यहां सब मतलब को संसार।

भइया  उल्टी   चले   बयार

हिरा गओ आंखों को पानी

खोज  रहे  ज्ञानी – विज्ञानी

अब   न कोऊ     ताबेदार।

भइया  उल्टी   चले   बयार।

चार  दिनन  के  लाने  भैया

कितनो  जोड़ खें  रखो  रुपैया।

“संतोष”  वो  ही  पालनहार

भइया  उल्टी   चले   बयार

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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