श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता – “झुक गया आसमान ।)

?अभी अभी # 552 ⇒ झुक गया आसमान ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

आसमान, तू क्यूं भरा बैठा है !

सूरज का रास्ता रोके

किस आंदोलन का है

प्रोग्राम ?

तेरे इरादे नेक नहीं लगते !

क्या तू जानता नहीं,

सूरज की रोशनी को रोकना

अपराध है !

बादलों से सूरज का घेराव

अलोकतांत्रिक है ।

गरीब का चूल्हा,

किसान की फसल,

धरती के सब प्राणी सुबह

सुबह ठंड में सूरज की

रोशनी में नहाकर दिन

का आरंभ करते हैं ।।

तूने बादलों को भेजा

सूरज के काम में

दखलंदाजी की !

कभी बारिश तो कभी

ओलावृष्टि की ।

कभी ओला,कभी कोहरा

तो कभी बारिश !

अरे ! यह कैसी साजिश ?

आसमान ! तुम खुदा तो नहीं

अपने पांव जमीन पर रखो

थोड़ी समझदारी रखो ।

सूरज से यह छेड़छाड़

बहुत महंगी पड़ेगी ।

अभी आएगा कोई दुष्यंत !

तबीयत से करेगा एक सूराख

और तुम्हारा गुरूर

हो जाएगा ख़ाक ।।

ये धरती सूरज के बिना

रह नहीं सकती ।

सूरज की किरणें कर रहीं

जबर्दस्त कोशिश !

अराजक कोहरे को

हटाने की ।

अब तुम्हारी खैर नहीं

एक बार कोहरा हटा नहीं

साफ हो जाएंगे तुम्हारे

मुगालते ऐ आसमान !

फिर धुंध छंटेगी

सूरज चमकेगा,

किरण मुस्काएगी

आसमान तू झुकेगा

और करेगा

उगते सूरज का

इस्तकबाल ।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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