आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता राष्ट्रीय गणित दिवस पर गणितीय सॉनेट)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 216 ☆

☆ कविता -राष्ट्रीय गणित दिवस पर गणितीय सॉनेट ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

तीन-पाँच कर कर हम हारे,

नौ दो ग्यारह हुए न संकट,

एक-एक ग्यारह हों प्यारे।

हों छत्तीस तभी हम-कंटक।

आँखें चार न करे सफलता,

पाँचों उँगली हुई न घी में,

चार सौ बीसी कर जग छलता। 

उन्नीस बीस न चाहे जी में। 

चार बुलाए चौदह आए

एक आँख से देखें कैसे?

दो नावों पर पैर जमाए। 

चारों खाने चित हों ऐसे।

दो दिन का मेहमान नहीं गम

सुनों बात दो टूक कहें हम।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२२.१२.२०१४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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