श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता चलो चलें महाकुंभ- 2025”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 213 ☆

🌻 चलो चलें महाकुंभ- 2025🌻

 (विधा – दोहा गीत)

 

संस्कारों को मानते, संस्कृति है पहचान।

वेद ग्रंथ सब जानते, भारत भूमि महान।।

 *

सप्त ऋषि की पुण्य धरा, साधु संतों का वास।

बहती निर्मल नीर भी, नदियाँ भी है खास।।

गंगा जमुना धार में, सरस्वती का मान।

संस्कारों को मानते, संस्कृति है पहचान।।

 *

 होता है संगम जहाँ , कहते प्रयागराज।

धर्म कर्म शुभ धारणा, करते जनहित काज।।

मोक्ष शांति फल कामना, देते इच्छित दान।

संस्कारों को मानते, संस्कृति है पहचान।।

 *

अमृत कुंभ का योग भी, होता शुभ दिन वर्ष।

सारे तीर्थ मंडल में, बिखरा होता हर्ष।।

आता बारह वर्ष में, महाकुंभ की शान।

संस्कारों को मानते, संस्कृति है पहचान।।

 *

आते हैं सब देव भी, धरकर योगी भेष।

नागा साधु असंख्य है, काम क्रोध तज द्वेष।।

पूजन अर्चन साधना, करते संगम स्नान।

संस्कारों को मानते, संस्कृति है पहचान।।

 *

गंगा मैया तारती, सबको देती ज्ञान।

भक्ति भाव से प्रार्थना, लगा हुआ है ध्यान।। 

पाप कर्म से मोक्ष हो, मांगे यही वरदान।

संस्कारों को मानते, संस्कृति है पहचान।।

 *

महाकुंभ यह पर्व है, सर्दियों की यह रीत।

दूर देश से आ मिले, बढ़ती सबकी प्रीत।।

भेदभाव को त्याग के, करना संगम स्नान।

संस्कारों को मानते, संस्कृति है पहचान।।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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