डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे ।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 262 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे – कोहरा ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆
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राह चले हम देखते, कोहरे की मुस्कान।
रात घनी अब दिख रही, दिनकर से अंजान।।
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नाम धूप का है नहीं, थर थर काँपे लोग।
लहर शीत की पड़ रही, कुहरे का संयोग।।
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सुबह अभी दिखती नहीं, दिन में जैसे रात।
कुहरे की चादर बड़ी, ठिठुरा अभी प्रभात।।
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बढ़ी शीत की लहर है, कुहरा है घनघोर।
ओढ़ रजाई दुबकते, हुई नहीं है भोर।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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