श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा।)
यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-८ ☆ श्री सुरेश पटवा
हम्पी के विध्वंस को देखने के पूर्व उसका स्वर्णयुग जानना ज़रूरी है, जो कि रतीय इतिहास का गौरव शाली अध्याय है। हरिहर तथा बुक्का ने हम्पी को राजधानी बनाकर साम्राज्य का नाम विजयनगर रखा। जिसकी स्थापना के साथ ही हरिहर तथा बुक्का के सामने कई कठिनाईयां थीं। वारंगल का शासक कापाया नायक तथा उसका मित्र प्रोलय वेम और वीर बल्लाल तृतीय उसके विरोधी थे। देवगिरि का तुगलक सूबेदार कुतलुग खाँ भी विजयनगर के स्वतंत्र अस्तित्व को नष्ट करना चाहता था। हरिहर ने सर्वप्रथम बादामी, उदयगिरि तथा गुटी के दुर्गों को सुदृढ़ किया। उसने कृषि की उन्नति पर भी ध्यान दिया जिससे साम्राज्य में समृद्धि आयी।
होयसल साम्राट वीर बल्लाल मदुरै के विजय अभियान में लगा हुआ था। इस अवसर का लाभ उठाकर हरिहर ने होयसल साम्राज्य के पूर्वी भाग पर अधिकार कर लिया। आंध्र का वीर बल्लाल तृतीय मदुरा के सुल्तान द्वारा 1342 में मार डाला गया। बल्लाल के पुत्र तथा उत्तराधिकारी अयोग्य थे। इस मौके को भुनाते हुए हरिहर ने होयसल अर्थात् आंध्र साम्राज्य पर अधिकार कर लिया। आगे चलकर हरिहर ने कदम्ब के शासक तथा मदुरा के सुल्तान को पराजित करके अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली।
हरिहर के बाद बुक्का राजा बना हालांकि उसने ऐसी कोई उपाधि धारण नहीं की। उसने तमिलनाडु का राज्य विजयनगर साम्राज्य में मिला लिया। कृष्णा नदी को विजयनगर तथा बहमनी की सीमा तय कर दी। कृष्णा के उत्तर में बहमनी और दक्षिण में विजयनगर साम्राज्य। बुक्का के बाद उसका पुत्र हरिहर द्वितीय सत्तासीन हुआ। हरिहर द्वितीय एक महान योद्धा था। उसने अपने भाई के सहयोग से कनारा, मैसूर, त्रिचनापल्ली, कांची, चिंगलपुट आदि प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।
दक्षिण भारत के इतिहास में विजयनगर अत्यंत समृद्ध साम्राज्य बन गया था। जिसकी तुलना उस समय के साम्राज्यों से की जाये तो रोमन साम्राज्य उस समय पतन के गर्त में जा रहा था। अंततः उसका 1453 में पतन हो ही गया। उसकी कोख से इंग्लैंड, फ़्रांस और जर्मनी सहित यूरोप के अन्य देश अस्तित्व में आना शुरू हुए थे। उत्तर भारत में ग़ुलाम, ख़िलजी, तुग़लक़, सैयद और लोधी वंश लड़खड़ा कर पतन के गर्त में जा रहे थे। जिनकी अस्थियों पर बाबर 1526 में मुग़ल साम्राज्य की नींव रखने वाला था। इतिहास के उसी कालखंड में विजयनगर का हिंदू साम्राज्य चरम समृद्धि पर पहुँचा हुआ था।
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना संगम वंश के हरिहर एवं बुक्का ने 1336 ईस्वी में की थी। हरिहर और बुक्का के पिता का नाम संगम था। उन्हीं के नाम पर इस वंश का नाम संगम वंश पड़ा। इस वंश का प्रथम शासक हरिहर प्रथम (1336 – 1356 ईस्वी) हुआ, जिसने 1336 ईस्वी में विजयनगर साम्राज्य कि स्थापना कर हम्पी को अपनी राजधानी बनाया। विजयनगर साम्राज्य ने चार अलग-अलग राजवंशों का शासन देखा गया: संगम के बाद सलुवा, तुलुवा और अराविदु राजवंश का शासन रहा।
दो अमरीकी विद्वानों ने डारोन एसेमोग्लू और जेम्स ए. रॉबिन्सन मिलकर ‘व्हाई नेशन्स फेल’ इस सवाल पर केंद्रित पुस्तक लिखी है, जिसे कुछ समय पूर्व पड़ा था। विश्व इतिहास के उदाहरण देकर यह बताया गया है कि कोई भी राजनीतिक इकाई तीन-चार पीढ़ियों में नये राजवंश या नये समीकरण में हस्तांतरित हो जाती है। विजयनगर के मामले में भी यही सिद्धांत प्रभावी नज़र आता है।
दूसरा राजवंश सालुव नाम से प्रसिद्ध था। इस वंश के संस्थापक सालुब नरसिंह ने 1485 से 1490 ई. तक शासन किया। उसने शक्ति क्षीण हो जाने पर अपने मंत्री नरस नायक को विजयनगर का संरक्षक बनाया। वही तुलुव वंश का प्रथम शासक माना गया है। उसने दक्षिण में कावेरी के सुदूर तलहटी भाग पर भी विजयदुन्दुभी बजाई। इसके बाद तुलुव वंश के राजा नरस नायक ने 1491 से 1503 तक राज किया। फिर क्रमश: वीरनरसिंह राय (1503-1509), कृष्ण देवराय (1509-1529), अच्युत देवराय (1529-1542) और सदाशिव राय (1542-1570) ने शासन किया।
उनके कृष्णदेव राय सबसे प्रतापी राजा हुए। कृष्णदेव राय ने 1509 से 1539 ई. तक शासन किया और विजयनगर को भारत ही नहीं दुनिया का उस समय का सबसे बड़ा समृद्ध साम्राज्य बना दिया। दिल्ली में उस समय लोधी वंश (1451-1516) का शासन चल रहा था। 1526 में मुगल बाबर आने वाला था।
कृष्ण देव राय के शासन में आने के बाद उन्होंने अपनी सेना को इस स्तर तक पहुँचाया कि जिसमें 88,000 पैदल सैनिक, 1.50 लाख घुड़सवार सैनिक, 20,000 रथ, 64,000 हाथी और 15,000 तोपखाना सैनिक थे। वे महान प्रतापी, शक्तिशाली, सर्वप्रिय, सहिष्णु और व्यवहारकुशल शासक थे। उन्होंने विद्रोहियों को दबाया, उड़ीसा पर आक्रमण किया और उत्तर भारत के कुछ भूभाग पर अपना अधिकार स्थापित किया। सोलहवीं सदी में यूरोप से पुर्तगाली भी पश्चिमी किनारे पर आकर डेरा डाल चुके थे। उन्होंने कृष्णदेव राय से व्यापारिक सन्धि करने की विनती की जिससे विजयनगर राज्य की श्रीवृद्धि हो सकती थी लेकिन कृष्ण देव राय ने मना कर दिया और पुर्तगालियों सहित विदेशी शक्तियों को राज्य से खदेड़ कर बाहर किया। वे गोवा दमन ड्यू के निर्जन भाग पर जम गये।
उन्होंने युद्ध के बाद युद्ध जीतकर विशाल विजयनगर साम्राज्य का विस्तार किया। उन्होने पूरे दक्षिण भारत को अधिकार में किया और आज के उड़ीसा के हिस्सों को तक राज्य में मिलाया, जिसमें गजपति शासक, प्रतापरुद्र को हराया था। वो एक महान योद्धा और सेनापति के रूप में अपने कौशल के अलावा बहुत महान विद्वान और कवि थे। दक्षिण भारत की कृष्णा नदी की सहायक तुंगभद्रा को इस बात का गर्व है कि विजयनगर साम्राज्य हम्पी स्थित राजधानी के साथ उसी गोद में पला, जिसमें हनुमान जी का बाल्यकाल बीता था।
क्रमशः…
© श्री सुरेश पटवा
भोपाल, मध्य प्रदेश
*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈