श्री अरुण कुमार दुबे
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “हाथों को मिलाना है महज रस्म निभाना…“)
☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 91 ☆
हाथों को मिलाना है महज रस्म निभाना… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆
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मतलब पे नहीं झूठ को तू सत्य कहा कर
इतना भी न किरदार से तू दोस्त गिरा कर
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इंसान करे जैसा है अंजाम भी वैसा
मज़लूम पे ऐसे न सितम देख किया कर
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मलहम न लगा सकते न कर सकते हवा गर
ज़ख्मों पे किसी के नहीं तू लौन मला कर
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अल्लाह हर इक वंदे की करता है ख़ता मुआफ़
मतलब नहीं है ये कि ख़ताऐं तू किया कर
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ये शौक़ ख़राबात के लाते है सड़क पर
फिर क्या तू करेगा बता विरसे को उड़ा कर
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ये प्यार भी क्या चीज है दो ज़िस्म हों इक जां
खुद अश्क़ बहाते है सनम तुमको सता कर
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दमकल के नहीं वश का बुझा पाना है देखो
नफ़रत के शरारों से कभी आग लगा कर
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हाथों को मिलाना है महज रस्म निभाना
यक ज़हती को मजबूत करो दिल को मिला कर
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भारी कोई हुंडी या खज़ाना मिला है क्या
जो आपने हासिल किया है मुझको भुला कर
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खरसूदा रिवायात है सदियों से अभी तक
क्या पाया है दुनिया ने मुहब्बत को ज़ुदा कर
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दे आया है बदले में तू ईमान व पगड़ी
क्या पास अरुण रह गया है ताज को पा कर
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© श्री अरुण कुमार दुबे
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