श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “हठ – कड़ी।)

?अभी अभी # 575 ⇒ हठ – कड़ी ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जो किसी अपराधी को हाथों में बांधी जाती है, वह हथकड़ी होती है। आज बँधी है, कल छूट जाएगी, हो सकता है, वह अपराधी न हो। और अगर हो भी तो सज़ा काटने के बाद रिहा भी हो सकता है। देश के लिए मर मिटने वालों के लिए क्या फाँसी और क्या हथकड़ी। फिल्मों और आजकल के टीवी सीरियल ने वैसे भी हथकड़ी को मज़ाक बना दिया है। कई निर्माता निर्देशकों का ऐसा कोई सीरियल नहीं होगा, जिसमें नायक-नायिका ने हथकड़ी न पहनी हो, जेल न तोड़ी हो, और फाँसी के फंदे से वापस न आया हो।

हम इसीलिए हथकड़ी की नहीं हठ-कड़ी की बात कर रहे हैं। हठ एक रोग भी है, और योग भी। आज हम बाल-हठ, त्रिया-हठ और राज-हठ की चर्चा तो करेंगे ही, बाबा  के हठ-योग पर भी सर्च-लाइट डालेंगे।।

तो क्यों न त्रिया चरित्र के बजाय बाबा के हठयोग से ही शुरुआत की जाए। हठयोग प्रदीपिका के अनुसार ह (हकार) हमारी सूर्य नाड़ी अर्थात इड़ा है, और ठ (ठकार )चंद्र नाड़ी सुषुम्ना है। साधारण भाषा में प्राणायाम द्वारा सूर्य-चंद्र (उष्ण-शीतल)का सम अवस्था में सुषुम्ना में प्रवेश होता है, लेकिन अगर योग के नाम पर केवल कठिन आसन और यात्राएं ही निकाली जाएँ, तो वह केवल एक हठ के नाम पर बाजारवाद फैलाना ही है, जिसका समय समय पर राजनैतिक फायदा वैसे ही उठाया जा सकता है, जैसा धर्म के नाम पर राजनीति में होता आया है। कबीर जिस इड़ा पिंगला सुषुम्ना की बात करते हैं, वही अध्यात्म है, वास्तविक हठ योग है।

हठ को आप ज़िद कह दें, जुनून कह दें, चाहें तो एक तरह का पागलपन कह दें। सभी प्रकार के हठ में बाल-हठ निर्दोष और मासूम होते हुए भी दिलचस्प और श्रेष्ठ है। बच्चों जैसी ज़िद कभी कभी बड़े-बूढ़े भी करते हैं, लेकिन अगर एक बार बच्चा ज़िद पर आ गया, तो आकाश पाताल एक कर देता है। वह केवल माँ की सूझ-बूझ ही होती है, जो बच्चे की ज़िद पूरी करने के लिए आसमान के चाँद को जल के थाल में उतरने के लिए मज़बूर कर देती है। बच्चे के पहाड़ जैसे हठ को एक छोटा सा खिलौना पल भर में समतल कर उसके मन को बहला सकता है।।

त्रिया हठ पर अधिक कहना उचित नहीं ! हम सब अपनी गृहस्थी लिए बैठे हैं। जो गुज़र रही है मुझ पर, उसे कैसे मैं बताऊँ। सबके अपने अपने किस्से हैं, अनुभव हैं। एक त्रिया का हठ हमने देखा, जब उसमें राजहठ भी शामिल हो गया। यानी करेला और नीम चढ़ा।

राज हठ में टके सेर भाजी और टके सेर खाजा बिकना कोई बड़ी बात नहीं ! जब यह राजहठ हिटलर बन जाता है तो दुनिया में तबाही खड़ी कर देता है। दुर्योधन के हठ और धृतराष्ट्र के पुत्रमोह के कारण अगर महाभारत हो सकता है, तो एक चाणक्य के अपमान के कारण समूचे नंद-वंश का संहार। यही हठ अगर नेताजी सुभाषचंद्र बोस को अंग्रेजों के खिलाफ आज़ाद हिंद फ़ौज़ खड़ी करने की हिम्मत देता है तो एक लाठी लंगोटी वाले को न केवल महात्मा का दर्ज़ा दिलवाता है, अपितु बँटवारे का दोषी भी करार दिया जाता है।

नमक सत्याग्रह और जेल भरो आंदोलन से क्या कभी किसी देश को आज़ादी मिली है। स्वदेशी भावना के लिए विदेशी कपड़ों की होली जैसी नौटँकी में अगर दम होता, तो बाबा कब के गाँधीजी के अनुयायी हो जाते।।

गुलज़ार साहब ने एक गीत लिखा, चप्पा चप्पा चरखा चले ! उससे प्रेरित हो, एक बार मोदीजी ने चरखा चला भी दिया। लेकिन किसी ने प्रेरणा नहीं ली। जिस देश में गर्मी के मौसम में भी, गन्ने की चरखी को भी कोई नहीं पूछ रहा, वहाँ चरखे का क्या औचित्य ? अब गाँधी-भक्त  डिजिटल चरखा लाने से तो रहे।

हथकड़ी तो इंसान को केवल एक अपराधी ही घोषित करती है, लेकिन हठ, एक ऐसी हथकड़ी है, जो इंसान खुद अपने हाथ से ही पहन लेता है। उसे हठधर्मिता कहते हैं। केवल अपना नुकसान तो ठीक, महापुरुषों का हठ तो देश के साथ भी खिलवाड़ कर गुजरता है। समझौता एक्सप्रेस भले ही न चलाएं, लेकिन जब हठ का मामला हो, थोड़ा ठहर जाएँ। किसी का कहा मान जाएँ।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments