श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सूरज के तेवर…“।)
अभी अभी # 576 ⇒ सूरज के तेवर श्री प्रदीप शर्मा
ये महाशय सूरज,
ऊंचे घोर अंबर में रहाते हैं
जेठ की भरी दुपहरी में
तो तमतमाते हैं ,
और जब पौस माह में
आसमान में ड्यूटी देते हैं
तो ठंड में कंपकंपाते हैं ।
अजीब फितरत है इनकी
कभी आग का गोला
तो कभी बर्फ का गोला !
दिन के चौकीदार हैं ये
खुद रात को तानकर सोते हैं;
कल तो इन्होंने हद कर दी
दिन भर बादलों का
कंबल ओढ़कर पड़े रहे
और अपनी रोशनी को
भी कंबल में छुपा लिया ।।
तलवार में जंग नहीं लगती
तलवार जंग लड़ने के लिए होती है ;
सूरज भी रोशनी देने के लिए होता है,
उसे भी कहीं जाड़ा लगता है !
लेकिन समय का फेर देखिए,
दिन में भी कभी यह सूरज
मुंह छुपाता है
तो कभी बारिश के रूप में
घड़ियाली आंसू बहाता है ।।
कभी तो मन करता है
एक रूमाल से इसके आंसू
पोंछ दूं,
थोड़ी इसको भी विक्स
की भाप दे दूं
इस बेचारे का कौन है
उस बेरहम आसमान में ।
फिर खयाल आता है
जब सूरज को ग्रहण लगता है
तो पुजारी भगवान का मंदिर भी नहीं खोलता !
कौन देवता बड़ा है
मंदिर वाला अथवा
आसमान वाला यही
हमारा आदित्यनाथ ।।
सर्वशक्तिमान भुवन भास्कर की
यह दशा हमसे देखी नहीं जाती ।
इस धरा के हर प्राणी की निगाह आसमान पर ही लगी रहती है ।
उसका तेज ही हमारा तेज है ।
काश गलत हो हमारा अनुमान !
आज नहीं ऐसा कोई बाल हनुमान,
जो फिर सूरज को बर्फ का गोला समझ मुंह में धर ले ।
समस्त वसुन्धरा की ओर से हमारा सूर्य नमस्कार
स्वीकार करें ।
यह ईश्वर का कोप हो
अथवा प्रकृति का प्रकोप
प्रकृति से खिलवाड़ करने वाले हम इंसान ही हैं ।
हमारी खता माफ़ हो ।
अपनी लीला समेटें !
स्वयं प्रकाशित हों
और समस्त चराचर को भी अपनी स्वर्ण रश्मियों से आलोकित एवं आल्हादित करें ।
ॐ सूर्याय नम:
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:
ॐ रवये नम:
ॐ खगाय नम:
ॐ मित्राय नमः
ॐ पूष्णे नमः
ॐ मारीचाय नम:
ॐ सावित्रे नम:
ॐ अर्काय नमः
ॐ भानवे नम:
ॐ आदित्याय नमः:
ॐ भास्कराय नमः
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
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