डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’
(डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार, बाल साहित्य लेखक, और कवि हैं। उन्होंने तेलंगाना सरकार के लिए प्राथमिक स्कूल, कॉलेज, और विश्वविद्यालय स्तर पर कुल 55 पुस्तकों को लिखने, संपादन करने, और समन्वय करने में महत्वपूर्ण कार्य किया है। उनके ऑनलाइन संपादन में आचार्य रामचंद्र शुक्ला के कामों के ऑनलाइन संस्करणों का संपादन शामिल है। व्यंग्यकार डॉ. सुरेश कुमार मिश्र ने शिक्षक की मौत पर साहित्य आजतक चैनल पर आठ लाख से अधिक पढ़े, देखे और सुने गई प्रसिद्ध व्यंग्यकार के रूप में अपनी पहचान स्थापित की है। तेलंगाना हिंदी अकादमी, तेलंगाना सरकार द्वारा श्रेष्ठ नवयुवा रचनाकार सम्मान, 2021 (तेलंगाना, भारत, के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के करकमलों से), व्यंग्य यात्रा रवींद्रनाथ त्यागी सोपान सम्मान (आदरणीय सूर्यबाला जी, प्रेम जनमेजय जी, प्रताप सहगल जी, कमल किशोर गोयनका जी के करकमलों से), साहित्य सृजन सम्मान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करकमलों से और अन्य कई महत्वपूर्ण प्रतिष्ठात्मक सम्मान प्राप्त हुए हैं। आप प्रत्येक गुरुवार डॉ सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – चुभते तीर में उनकी अप्रतिम व्यंग्य रचनाओं को आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी विचारणीय व्यंग्य रचना नेताओं का संकल्प और जनता का विकल्प।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ चुभते तीर # 37 – नेताओं का संकल्प और जनता का विकल्प ☆ डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ ☆
(तेलंगाना साहित्य अकादमी से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)
गांव का नाम था आशावादीपुर, जहां हर चार साल में उम्मीदें हवा में तैरतीं, और ज़मीन पर गिरते ही चकनाचूर हो जातीं। इस बार का चुनावी माहौल बड़ा ही गरमागरम था। प्रत्याशी धर्मपाल वर्मा, जो हर बार अपने वादों से गांववालों को चकाचौंध कर देते थे, इस बार फिर तैयार थे। उनके प्रमुख वादे—”हर घर में इंटरनेट, हर हाथ में टैबलेट, और हर गली में डामर की सड़क।”
सभा में, धर्मपाल वर्मा की आवाज़ गूंज रही थी, “भाइयों और बहनों, मैंने जो कहा, वो करके दिखाया। पिछली बार मैंने वादा किया था कि हर खेत तक पानी पहुंचेगा। पानी पहुंचा ना?”
पीछे से एक बूढ़े किसान ने खांसते हुए कहा, “हां, पानी पहुंचा था, लेकिन ट्यूबवेल के पाइप में, वो भी चुनाव के आखिरी दिन तक।”
सभा में तालियां और ठहाके गूंज उठे। धर्मपाल जी मुस्कुराए, “सिर्फ आलोचना से काम नहीं चलेगा। इस बार मैं गारंटी देता हूं कि आपकी गली चमचमाती सड़कों से भरी होगी।”
गांव के एक युवा, शंभू, जो हमेशा धर्मपाल जी के भाषणों में चाय बेचता था, इस बार एक सवाल लेकर खड़ा हो गया, “साहब, आपके भाषण में जो सड़कें हैं, वो हमारे गांव में क्यों नहीं दिखतीं? क्या वो भाषण में ही बनती हैं?”
धर्मपाल जी ने अपने रुमाल से पसीना पोछा और जवाब दिया, “सड़कें बन रही हैं, बेटा। देखना, अगली बार जब मैं आऊंगा, तो मेरी गाड़ी से धूल नहीं उड़ेगी।”
चुनाव नज़दीक था, और वादों की बारिश हो रही थी। “हर गरीब को पक्का मकान देंगे, हर बच्चे को शिक्षा मुफ्त। बिजली चौबीस घंटे और पानी सातों दिन!”
गांववाले मन ही मन बोले, “अगर ये सब होगा, तो फिर ‘आशावादीपुर’ को ‘सपनों का शहर’ बना दिया जाएगा।”
धर्मपाल जी जीत गए। गांववालों ने मिठाई खाई, और फिर भूले नहीं, बल्कि सपनों को धूल खाते देखा। चुनाव के अगले दिन ही बिजली की लाइन काट दी गई। “सरकारी काम में थोड़ी देरी होती है,” अधिकारी ने कहा। सड़कें बनीं, लेकिन बारिश में बह गईं। पक्के मकान आए, लेकिन दीवारों पर दरारें थीं। हर हाथ में टैबलेट की जगह, हर हाथ में बिल थमा दिया गया।
धर्मपाल जी पांच साल बाद फिर लौटे। इस बार उनके वादे और बड़े थे। “इस बार हर घर में हवाई जहाज और हर खेत में ड्रोन से सिंचाई!”
गांववालों ने ठहाका लगाया, “साहब, सड़कें तो पहले बनवा दीजिए, ड्रोन बाद में चलाएंगे।”
सभा खत्म हुई, धर्मपाल जी गाड़ी में बैठे, और गाड़ी के ड्राइवर ने धीरे से कहा, “साहब, गाड़ी का टायर इस सड़क पर फिर फंस गया।” धर्मपाल जी चुपचाप आसमान की ओर देखने लगे।
गांववाले अब जानते थे कि वादे सिर्फ वादे हैं। लेकिन एक नई पीढ़ी तैयार हो रही थी, जो सवाल पूछने लगी थी। धर्मपाल जी इस बदलाव से घबरा गए। और गांव ने तय किया, “अब चुनाव में कोई वादा नहीं, सिर्फ काम पर वोट मिलेगा।”
अब गांव का नाम बदलकर हो गया—”प्रश्नवादीपुर।”
© डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’
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