डॉ सत्येंद्र सिंह
(वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सत्येंद्र सिंह जी का ई-अभिव्यक्ति में स्वागत। मध्य रेलवे के राजभाषा विभाग में 40 वर्ष राजभाषा हिंदी के शिक्षण, अनुवाद व भारत सरकार की राजभाषा नीति का कार्यान्वयन करते हुए झांसी, जबलपुर, मुंबई, कोल्हापुर सोलापुर घूमते हुए पुणे में वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी के पद से 2009 में सेवानिवृत्त। 10 विभागीय पत्रिकाओं का संपादन, एक साझा कहानी संग्रह, दो साझा लघुकथा संग्रह तथा 3 कविता संग्रह प्रकाशित, आकाशवाणी झांसी, जबलपुर, छतरपुर, सांगली व पुणे महाराष्ट्र से रचनाओं का प्रसारण। जबलपुर में वे प्रोफेसर ज्ञानरंजन के साथ प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े रहे और झाँसी में जनवादी लेखक संघ से जुड़े रहे। पुणे में भी कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। वे मानवता के प्रति समर्पित चिंतक व लेखक हैं। अप प्रत्येक बुधवार उनके साहित्य को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – “छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे..“।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ सत्येंद्र साहित्य # 6 ☆
कविता – छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे… ☆ डॉ सत्येंद्र सिंह ☆
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बंदिशें आएंगी, रुकावटें आएंगी,
पर तुम न रुकना, राह बन जाएंगी।
छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।
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आगे चलते रहना, मुड़ कर न देखना,
असफला न देखना सफलता देखना।
छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।
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हारना सोचना मत, कोशिश छोड़ना मत,
उडोगे तो गिरोगे, पर उड़ना छोडना मत।
छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।
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लोग गिराएंगे डराएंगे, तुम कुछ न देखना,
बस उड़ने की सोचना, आगे ही देखना।
छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।
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साथ कोई दे न दे, जमींन तेरे साथ है,
ज़मीर पक्का हो, आसमान साफ है।
छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।
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तू लक्ष्य तय कर, उसे पाने का संकल्प कर,
और कुछ मत कर, लक्ष्य को प्राप्त कर।
छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।
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हिम्मत तेरा हथियार है, जजवा तेरा उद्गार है,
सपना देखना ऊंचाई का, होगा साका है।
छू ले आसमान बंदे, छू ले आसमान बंदे।
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© डॉ सत्येंद्र सिंह
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सकारात्मक ऊर्जा देती रचना। हार्दिक बधाई!💐