श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “शौकीन।)

?अभी अभी # 584 ⇒ शौकीन ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

कुछ लोग मीठे के शौकीन होते हैं, कुछ नमकीन के ! सन् १९८१ में बसु चटर्जी की एक फिल्म आई थी शौकीन, जिसमें उत्पल दत्त, अशोक कुमार, रति अग्निहोत्री और मिथुन चक्रवर्ती जैसे मंजे हुए कलाकार थे। ऋषिकेश मुखर्जी और बसु चटर्जी अक्सर पारिवारिक हल्की फुल्की, मनोरंजक स्वस्थ फिल्में बनाते हैं। मैं यह फिल्म नहीं देख पाया। मैं तब सठियाया नहीं था, फिर भी सठियाए लोगों की उल्टी सीधी हरकतें मुझे न तब पसंद थी, न आज हैं।

पसंद अपनी अपनी, खयाल अपना अपना की तरह ही लोगों के अपने अपने शौक होते हैं। अच्छी आदत को शौक समझा जाता है और बुरी आदत को लत। आदत और तबीयत में बड़ा महीन फर्क होता है। जो शौकीन तबीयत के लोग होते हैं उनमें से कुछ केवल पान का शौक रखते हैं तो कुछ के अन्य शौकों में पान भी शामिल होता है। वैसे पान का शौक संगीत रसिकों और भोजन प्रिय लोगों को भी होता है। पान खाएं सैंया हमार। ।

कहते हैं, समय बड़ा कीमती होता है। फिर भी हर व्यक्ति अपने कीमती समय में से कुछ समय अपने शौक के लिए निकाल ही लेता है। इसे अंग्रेजी में hobby हॉबी कहते हैं। सेलिब्रिटीज और विशिष्ट व्यक्तियों से यह सवाल अवश्य पूछा जाता है, आप फुर्सत के वक्त में क्या करते हैं। जब से लोगों के हाथ में मोबाइल आया है, फुर्सत के कीमती पल, पलक झपकते ही निकल जाते हैं।

शौक का संबंध रुचि से होता है। सुरुचि से सृजन होता है। शौक जब passion बन जाता है तब कलाकार मुखर हो उठता है। कलम और कूची रंग लाती है। पेशे और शौक में बड़ा अंतर होता है। पेशा अगर पैसा देखता है तो शौक सिर्फ जुनून और मस्ती देखता है। ।

कुछ लोगों को खतरों से खेलने का शौक होता है। यह खतरा अगर रोमांच अथवा एडवेंचर तक सीमित है, तो ठीक, लेकिन अगर यह जीवन को एक विपरीत अथवा नकारात्मक दिशा की ओर ले जा रहा है, तो यह एक खतरे का संकेत है। ऐसे शौक से तौबा, ऐसे खतरे से बचना और किसी को बचाना ही बेहतर।

जीवन में अरुचि ना हो। रुचि टेस्ट को कहते हैं। आप इसे जीवन मूल्य भी कह सकते हैं। सुरुचि, रस, मिठास, कोमलता एवं सहजता कुछ ऐसे गुण हैं, जो शौक से आजमाए जा सकते हैं। अच्छा खाएं, अच्छा पहनें, अच्छा बोलें। अपने शौक़ को एक दिशा दें, हो सकता है, वह आपकी दशा बदल दे।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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