श्री जगत सिंह बिष्ट
(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)
(ई-अभिव्यक्ति के “दस्तावेज़” श्रृंखला के माध्यम से पुरानी अमूल्य और ऐतिहासिक यादें सहेजने का प्रयास है। श्री जगत सिंह बिष्ट जी (Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker) के शब्दों में “वर्तमान तो किसी न किसी रूप में इंटरनेट पर दर्ज हो रहा है। लेकिन कुछ पहले की बातें, माता पिता, दादा दादी, नाना नानी, उनके जीवनकाल से जुड़ी बातें धीमे धीमे लुप्त और विस्मृत होती जा रही हैं। इनका दस्तावेज़ समय रहते तैयार करने का दायित्व हमारा है। हमारी पीढ़ी यह कर सकती है। फिर किसी को कुछ पता नहीं होगा। सब कुछ भूल जाएंगे।”
दस्तावेज़ में ऐसी ऐतिहासिक दास्तानों को स्थान देने में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है। इस शृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है श्री जगत सिंह बिष्ट जी का एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ “कालजयी कृति राग दरबारी के रचयिता: सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल”।)
☆ दस्तावेज़ # 12 – कालजयी कृति राग दरबारी के रचयिता: सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल ☆ श्री जगत सिंह बिष्ट ☆
श्रीलाल शुक्ल का नाम हिंदी साहित्य के शीर्षस्थ व्यंग्यकारों में हरिशंकर परसाई, शरद जोशी और रवींद्रनाथ त्यागी के साथ बहुत सम्मानपूर्वक लिया जाता है। एक सरकारी अफसर जो फाइलों के ढेर में उलझा रहता हो, इतना बारीक व्यंग्य लिख देता है कि पढ़ते-पढ़ते आप सोचने लगते हैं कि ये तो हमारे ही आसपास का हाल है।
वे आईएएस अफसर थे और इस सरकारी नौकरी में उन्होंने भारतीय समाज और प्रशासन की हर बारीकी को इतने करीब से देखा कि उसे कागज़ पर उतार दिया। लेकिन उन्होंने केवल देखा ही नहीं, महसूस भी किया। शायद यही वजह थी कि उनका व्यंग्य महज़ हंसी-मज़ाक नहीं था, बल्कि समाज की गहरी सच्चाइयों को दिखाने वाला एक आईना था।
उनका व्यंग्य उपन्यास ‘राग दरबारी’ एक कालजयी कृति है। 1968 में जब यह उपन्यास प्रकाशित हुआ तो जैसे साहित्य जगत में खलबली मच गई। यह उपन्यास भारत के ग्रामीण जीवन, राजनीति और शिक्षा प्रणाली का ऐसा सजीव चित्रण करता है कि जो भी इसे पढ़ता है, वह खुद को शिवपालगंज के किसी गली-कूचे में घूमता हुआ महसूस करता है।
‘शिवपालगंज’ गाँव हर जगह है। आपका अपना गाँव, कस्बा, मोहल्ला। और इसमें जो पात्र हैं – वैद्य जी, रंगनाथ, छोटे पहलवान – ये सब ऐसे लगते हैं जैसे हमारे ही आसपास के लोग हों। वैद्यजी ऐसे किरदार हैं जिनका नाम लेते ही चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। उनकी चतुराई, उनकी राजनीति और उनके तंज इतने अनोखे हैं कि वे हिंदी साहित्य का हिस्सा बन गए हैं।
‘राग दरबारी’ में शिक्षा प्रणाली पर लाजवाब कटाक्ष है। शुक्ल ने लिखा कि हमारे स्कूल सिर्फ़ परीक्षा पास करने की मशीनें हैं। ज्ञान से कोई मतलब नहीं है।
जब इस उपन्यास को टीवी पर दिखाया गया, तो लोग देखकर ऐसे खुश होते थे मानो उनके ही गाँव की कहानी हो। 1986 में दूरदर्शन पर ‘राग दरबारी’ को धारावाहिक के रूप में दिखाया गया था। अगर आपने देखा हो, तो आपको याद होगा कि हर किरदार जैसे किताब के पन्नों से निकलकर आपके सामने आ गया हो।
मुझे लगता है कि ‘राग दरबारी’ की खासियत यही है कि यह महज़ एक उपन्यास नहीं, बल्कि एक समय, एक समाज का दस्तावेज़ है। और यह दस्तावेज़ तब भी प्रासंगिक था, आज भी है, और शायद आगे भी रहेगा।
शुक्ल का कहना था कि शिवपालगंज जैसा गाँव हर जगह है। मैं जब-जब ‘राग दरबारी’ पढ़ता हूँ तो मुझे लगता है कि वह गाँव कहीं और नहीं बल्कि मेरे ही भीतर है।
उनका व्यक्तित्व बहुत सहज था। लगता ही नहीं था कि वे इतने बड़े सरकारी अधिकारी और व्यंग्यकार हैं। उनके द्वारा लिखा गया एक पत्र आज भी मेरे पास अमूल्य निधि की तरह सुरक्षित है। उस पोस्टकार्ड को मैं ई-अभिव्यक्ति के पाठकों के साथ साझा कर रहा हूं। उन्होंने लिखा:
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बी 2251 इंदिरा नगर लखनऊ 226016
17.1.’99
प्रिय बिष्ट जी,
‘कुछ लेते क्यों नहीं’ की प्रति मिली। कृतज्ञ हूं। एक बार देख गया हूं। काफी दिलचस्प है और अमौलिक विषयों पर मौलिक दृष्टि से संपन्न है। इत्मीनान से बाद में पढूंगा।
समस्त शुभकामनाओं के साथ,
आपका
श्रीलाल शुक्ल
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उन्हें शत् शत् नमन!💐
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© जगत सिंह बिष्ट
Laughter Yoga Master Trainer
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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈