श्री अरुण कुमार डनायक

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस -ग्यारह  कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है ।

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आपको उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # सात ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

11.11.2019 सुबह-सुबह घुघरी से यात्रा पुनः प्रारंभ हुई। नदी किनारे रास्ता सफर करने लायक न था सो गांव से होकर निकले।

कोई दो किलोमीटर दूर एक गौड़ परिवार के आशियाने में रुके। उसने सीताफल खाने को दिया और भैंस का ताजा दूध पीने को। उनके भोजन में शाकाहार और मांसाहार दोनों हैं। बटेर, खरगोश और मछली भोजन हेतु आसानी से मिल जाते हैं। आगे बढ़े  तो अन्नीलाल लोधी पत्नी व दो पुत्रों के साथ अपने खेत में आलू बोते दिखे।  उन्होंने नर्मदे हर के साथ हमारा स्वागत किया और चाय पिलाई ।

डांगर टीले पार करते हुए महादेव पिपरिया गांव पहुंचे। गांव में नर्मदा तट पर भगवान शंकर की विशालकाय लिंग है और यह  शिव मंदिर इस गांव की पहचान बन गया है।  लोग इसे मोटा महादेव भी कहते हैं। अन्य देवी देवताओं के  भी मंदिर हैं पर वे अपेक्षाकृत नये हैं।

यहां से हमें पुनः नदी के किनारे पर चलने का मौका मिला। उत्तरी तट की ओर एक छोटी पर्वत माला ने हमें आकर्षित किया। ग्रामीणों ने बताया यह झिल्पी ढाना है, भोपाल तक गई है। हमें मैकलसुता के दादा विन्ध्य पर्वत की एक और श्रृंखला के दर्शन हो गये। पौराणिक कथाओं के अनुसार नर्मदा का उद्गम स्थल मैकल, विन्ध्य पर्वत का पुत्र है।  कुछ दूर चले होंगे कि एक अद्भुत चट्टाननुमा आकृति ने आकृष्ट किया। समीप जाकर देखा तो समझ में आया कि यह करोड़ों वर्ष पूर्व किसी प्राकृतिक हलचल का साक्षी वृक्ष का जीवाश्म है।

नदी किनारे खेती-बाड़ी की तैयारियों में अब तेजी दिखने लगी है। जगह जगह किसानों ने तट पर बबूल आदि कंटीले वृक्षों की बारी लगा दी है तो कहीं कहीं बोनी के पहले स्प्रिकंलर से सिंचाई भी  हो रही है। रास्ता फिसलन भरा होने से सम्भल कर चलना पड़ता है। कहीं कहीं छोटे छोटे नाले भी हैं वहां जमीन दलदली है, हमारे एक साथी असावधानी वश ऐसे ही दलदल में फंस गये और किसी तरह बाहर निकलने में सफल हुए।

नदी किनारे चलते चलते-चलते हम करहिया गांव पहुंचे। नदी का तट रेतीला था अतः हम सबने स्नान किया और समीप ही  ग्राम पंचायत द्वारा निर्मित सामुदायिक भवन में विश्राम हेतु व्यवस्था की। गांव का मिडिल स्कूल भी सामने था व स्कूल की शिक्षिका रजनी मेहरा से अपना प्रयोजन बता बच्चों से गांधी चर्चा की इच्छा जताई वे सहर्ष तैयार हो गई। मैंने और प्रयास जोशी ने मोर्चा संभाला बच्चों को गांधी जी की जीवनी और संस्मरण सुनाए। सामने प्राथमिक शाला के बच्चों ने अविनाश को घेर लिया और पढ़ाने का आग्रह किया। बच्चों की बात भला कौन टालता है। हमने स्मार्ट कक्षा का टीव्ही देखा। कमलेश पटैल, शिक्षक ने बताया कि बच्चे स्कूल आते नहीं हैं और वे स्मार्ट टीवी से कार्टून आदि दिखाकर बच्चों को स्कूल आने आकर्षित करते हैं।

मेरे पास गांधी जी एक पुस्तक ‘ रचनात्मक कार्यक्रम’ बची थी वह मैंने कमलेश पटेल को दे दी।  उधर सामुदायिक भवन में हमें मुन्नालाल लोधी मिल गये, उन्होंने दोपहर के भोजन दाल बाटी की व्यवस्था कर दी। हमने कुछ देर आराम किया और नदी किनारे चलते चलते गरारु घाट पहुंचे। यहां तट पर नरेश लोधी मिल गये। वे गांव में नर्मदा पुराण कथा के आयोजन में शामिल हैं। हमें आग्रह पूर्वक चांदनी पंडाल के नीचे रात्रि विश्राम हेतु रोक लिया। बिछाने को गद्दे लेकर हम लेट गये। जब करहिया में दाल बाटी बनी तो अविनाश के पास घी था उसे गुड़ में मिलाकर चूरमा बना लिया था। यहीं चूरमा हमारा डिनर था ।

गरारू तट से नर्मदा की कल-कल करती प्रवाहमान थी, कल-कल की यह ध्वनि केवल घाट पर ही सुनाई देती थी। उधर आकाश में चौदहवीं का चांद अपनी छटा बिखेरते हुए दर्शन दे रहा था। हमने कोई एक बजे रात उसे अपने कैमरे में कैद किया।आज परिक्रमा में तट पर सोने का आनंद लिया।

 

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