स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 224 – कथा क्रम (स्वगत)…
(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )
क्रमशः आगे…
पल रही थी
कोई कामना
कोई उत्तेजना ?
माधवी ।
अक्षत योनि एक धोखा है
मानसिक प्रपंच है
विज्ञान सम्मत नहीं ।
स्त्री के
शरीर की
संरचना
और
आयु के
प्राकृतिक
परिवर्तनों को विरुद्ध
कोई कैसे जा सकता है?
मानता हूँ
कि
नारी
होती है
नदी के मानिन्द,
दुष्प्रयासों के बावजूद
सदानीरा, निर्मल, पवित्र ।
किन्तु
कोई
सप्रयास
उसे
मलिन करे
बाँधे
तो
दोष किसका?
☆
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈