श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना ऋतुराज बसंत सुहावत है…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 231 ☆ ऋतुराज बसंत सुहावत है… ☆

चारों ओर उल्लास का वातावरण, आम्र बौर की आहट, सरसों के फूलों का खिलना, पूरा परिवेश मानो पीताम्बर के रंग में डूबा हुआ माँ शारदे की आराधना कर रहा है। पीला रंग बौद्धिकता को बढ़ाता है, गुरु की कृपा, वाणी में दिव्यता, चहुँओर मानो एक आह्लादित नाद सुनाई दे रहा हो ऐसा अहसास होने लगता है। ऐसे में रसिक मन गुनगुना उठाता है…

बसंत वयार सुशोभित होय,

चलो सखि बाँगन आज अभी।

लुभावत पीत बसे मन आय,

अली कलियाँ खिल जाय सभी।।

कहे मनमीत यही अब चाह,

बजे सुर साज सुहाय तभी।

करूँ कुछ नेक सिया वर राम,

कृपा कर दर्शन होय कभी।।

*

सखि मंगल गान सुनाय रहीं,

मधु कोकिल कंठ लुभावत है।

सब भक्त कहें प्रिय शारद माँ,

ऋतुराज बसंत बुलावत है।।

अलि आन बसी हिय पावनता

जब कोयल कूक सुनावत है।

सब पीतमयी अब कुंजन में

दिन- रैन यही गुण गावत है।।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments