श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “शहद की मधुमक्खी।)

?अभी अभी # 595 ⇒ शहद की मधुमक्खी ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

कबीर यूँ तो जुलाहे थे, लेकिन जब दुहते थे, तो दोहे निकलते थे।

माखी गुड़ में गड़ी रहे, पंख रह्यो लिपटाय।

हाथ मले और सर धुने, लालच बुरी बलाय।

कबीरदासजी जिस मक्खी की बात कर रहे हैं, वह पहले तो गंदगी पर बैठती है, और बाद में गुड़ की ढेली पर। यह मक्खी बीमारियों की जड़ है। यह BPL माने बिलो पॉवर्टी लाइन वाली मक्खी है। हम जिस मक्खी की बात आज कर रहे हैं, वह मधु की मक्खी याने क्रीमी लेयर वाली मक्खी है।।

यह न तो गंदे में बैठती है, न ही गुड़ से इसे कोई विशेष प्रेम है। यह अपने आप में शहद की एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट है। यह एक रसिक भँवरे की तरह फूलों से परागकण एकत्रित करके शहद का थोक में उत्पादन करती है। लोभी भँवरों की तरह आदमी भी शहद के लालच में इसे पालने लग गया है, और उस लालन-पालन का उसने नाम रखा है, मधुमक्खी पालन।

मक्खी में भी ढाई आखर ही होते हैं, लेकिन मक्खियों से कोई प्रेम नहीं करता। मधुमक्खी में ढाई आखर नहीं है, लेकिन शहद के लालच में इंसान इससे प्रेम करता है। मक्खी से ज़्यादा लालची तो इंसान ही हुआ न।।

जंगलों में, बड़े बड़े वृक्षों के तनों में, पुरानी विशाल इमारतों के वे अंधेरे कोने, जहाँ जीरो मेंटेनेंस होता है, मधुमक्खी पहले मोम के छत्ते बनाती है, और फिर उसमें शहद का निर्माण करती है। फूलों के रस से शहद के निर्माण की यह प्रक्रिया बड़ी रोचक, विचित्र और प्रेरणादायक है। आश्चर्यजनक रूप से एक रानी मधुमक्खी और उसकी श्रमिक मधुमक्खी ही यह पूरा कारोबार संभालती है और नर को निखट्टू कहा जाता है।

जहाँ उत्पादन अधिक होता है, वहाँ परिवार नियोजन का कोई प्रयोजन नहीं। रानी मधुमक्खी निखट्टू नर की सहायता से एक दिन में 1500 अंडे दे देती है, जिनका पालन श्रमिक मधमक्खियों को ही करना पड़ता है। पहले मोम का छत्ता बनाना, और फिर फूलों से मधु निकाल छत्तों में एकत्रित करना। कौन जानता है, यह कर्म सकाम है या निष्काम।।

प्रकृति के आँचल में खनिज है, खाद्यान्न है, सब जीव जंतुओं के लिए राशन पानी है, हवा है, धूप है, पानी है। पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए जंगलों का अस्तित्व अवश्यम्भावी है।

प्रोजेक्ट टाइगर ! यानी प्रोटेक्ट टाइगर और प्रोटेक्ट जंगल। एनिमल किंगडम, ह्यूमन किंगडम से अधिक मूल्यवान है। हम मुँह उठाए मौज मस्ती और मनोरंजन के लिए वन में चले जाते हैं, वनचर हमारी बस्ती में भूले भटके ही आते हैं, और जब भी आते हैं, मुँह की खाते हैं।।

गुलाब में काँटे होते हैं, शहद पैदा करने वाली मधुमक्खी भी डंक मारती है। देवता अमृतपान करते हैं, शंकर गरल को धारण कर नीलकंठ कहलाते हैं। शहद के छत्तों की रक्षा के लिए ही शायद प्रकृति ने इन मधु मक्खियों को डंक हथियार के रूप में दिए हैं। हम प्रेम से शहद चाटते हैं, और मधुमक्खी काटे, तो भागते हैं।

जब भी आप नींबू-शहद का सेवन करें, इनके उपकार को न भूलें। आयुर्वेदिक उपचार में दवाओं का सेवन शहद के साथ ही किया जाता है। पृथ्वी पर अगर कहीं अमृत है, तो वह शहद ही में है। शहद ही में है। मधुमक्खी तुम धन्य हो।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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