श्री रमाकांत ताम्रकार

☆ व्यंग्य – जुगाड़ ☆ श्री रमाकांत ताम्रकार 

वह बहुत गरीब था किन्तु जैसे तैसे कर उसने ग्रेजुएशन कर राज्य सिविल सेवा में अधिकारी का पद पा लिया था। उसने सरकारी नौकरी में आने से पहले यह शपथ ली थी कि वह तन-मन से देश की सेवा करेगा और मजलूमों का सहारा बनेगा, पूरी मेहनत से अपने कर्तव्य को अंजाम देगा।

अब प्रदेश के जिलों संभागों में नौकरी करने के बाद उसकी पदस्थापना मंत्रालय में हो गई। वह मेहनत तो बहुत करता किन्तु मंत्रालय का कल्चर जिला और संभाग के कल्चर से अलग ही होता है क्योंकि यहां प्रदेश के मुख्यमंत्री, मंत्री और शीर्षस्थ अधिकारियों का राज होता ही है बल्कि यहां तो छुट भैया नेताओं का भी राज होता है, उनका कहना मानना भी नौकरी का एक हिस्सा होता है, वह भी डरते डरते मंत्रालय के कल्चर में ढल रहा था और यहां कि बारीकियां भी कुछ हद तक सीख गया था। किन्तु अभी तक वह ढर्रे में ढल नहीं पा रहा था। वह यहां के कल्चर में भी डेड ईमानदार बने रहना चाहता था किन्तु किन्तु किन्तु…

उसकी पत्नी आए दिन उसे ताने मारती और कहती देखो तुम्हारे साथ के लोगों ने कितनी तरक्की कर ली है उनके पास खुद का मकान है फार्म है गाड़ियां है नौकर चाकर है लड़के बच्चों के लिए अलग से कारें और रोजगार है पर तुम्हारे पास क्या है एक खटारा गाड़ी उसमें भी कभी कभी धक्का लगाना पड़ जाता है सोचो रिटायरमेंट के बाद क्या किराये के घर में ही रहोगे। अभी भी समय है कुछ कर गुजरों जिससे बुढ़पा आराम से कट जाए। वह विचार करता किन्तु कर कुछ नहीं पाता। वह पत्नी के बातों से तंग आकर कभी कभी कुछ कुछ सोचने लगता।

एक दिन उसकी पत्नी ने कहा ’देखो जी टाॅमी को कितनी गर्मी लग रही है इसकी कुछ व्यवस्था करो।’ उसने कहा ’अभी तनख्वाह नहीं हुई है हो जाएगी तो एक पंखा खरीद लायेगें।’ इस बात पर उसकी और पत्नी में बहुत बहस हुई।

वह आफिस तो आ गया पर वह बहुत ही उखड़ा हुआ था। आफिस का बड़ा बाबू बड़ा ही घाघ था वह उसकी स्थिति को देखकर समझ गया कि साहब आज किसी बात से बड़े परेशान है। वह लोगों से कहता था कि मैं इस मंत्रालय की दाई हूॅ मुझसे कुछ छुप नहीं सकता। उसकी चिड़चिड़ाहट को देखकर आफिस के बड़े बाबू ने उससे पूछा ’क्या बात है सर यदि किसी बात से परेशान है तो मुझे बताईए मैं हल करने की कोशिश कर आपकी परेशानी खत्म कर दूंगा। ’ बड़े बाबू की आत्मीयता उसे पहले दिन से ही प्रभावित कर रही थी। बड़े बाबू के प्यार भरे शब्द सुनकर उसने बड़े बाबू को सारी बात विस्तार से बताई। इस पर बड़े बाबू ने कहा ’सर मैं आपके घर दो ए.सी. भिजवा देता हूँ  एक आप उपयोग कीजिए और दूसरा टाॅमी के लिए लगवा दीजिए।’

’टाॅमी के लिए ए.सी…।’

’हाँ सर, ए.सी.।’

’पर ऐसा होगा कैसे, हम रिकार्ड में क्या शो करेंगे’ उसने कहा। तब बड़े बाबू ने बड़े ही इत्मीनान से कहा – ’आप बिल्कुल चिन्ता न करें सर, एक ए.सी. मंत्री जी के यहां तथा दूसरा ए.सी. बड़े साहब के घर में लगा हुआ रिकार्ड में शो कर देंगे, न मंत्री से कोई पूछ सकता है और न ही बड़े साहब से।’

वह इस जुगाड़ से हतप्रभ था।

© श्री रमाकान्त ताम्रकार

संपर्क – 423 कमला नेहरू नगर, जबलपुर। 

मोबाइल 9926660150

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’   ≈

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