श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच # 278 ☆ सामान्य लोग, असामान्य बातें !
सुबह का समय है। गाय का थैलीबंद दूध लेने के लिए रोज़ाना की तरह पैदल रवाना हुआ। यह परचून की एक प्रसिद्ध दुकान है। यहाँ हज़ारों लीटर दूध का व्यापार होता है। मुख्य दुकान नौ बजे के लगभग खुलती है। उससे पूर्व सुबह पाँच बजे से दुकान के बाहर क्रेटों में विभिन्न ब्रांडों का थैलीबंद दूध लिए दुकान का एक कर्मचारी बिक्री का काम करता है।
दुकान पर पहुँचा तो ग्राहकों के अलावा किसी नये ब्रांड का थैलीबंद दूध इस दुकान में रखवाने की मार्केटिंग करता एक अन्य बंदा भी खड़ा मिला। उसके काफी जोर देने के बाद दूधवाले कर्मचारी ने भैंस के 50 लीटर दूध रोज़ाना का ऑर्डर दे दिया। मार्केटिंग वाले ने पूछा, “गाय का दूध कितना लीटर भेजूँ?” ….”गाय का दूध नहीं चाहिए। इतना नहीं बिकता,” उत्तर मिला।…”ऐसे कैसे? पहले ही गायें कटने लगी हैं। दूध भी नहीं बिकेगा तो पूरी तरह ख़त्म ही हो जायेंगी। गाय बचानी चाहिए। हम ही लोग ध्यान नहीं देंगे तो कौन देगा? चाहे तो भैंस का दूध कुछ कम कर लो पर गाय का ज़रूर लो।”….”बात तो सही है। अच्छा गाय का भी बीस लीटर डाल दो।” ..संवाद समाप्त हुआ। ऑर्डर लेकर वह बंदा चला गया। दूध खरीद कर मैंने भी घर की राह ली। कदमों के साथ चिंतन भी चल पड़ा।
जिनके बीच वार्तालाप हो रहा था, उन दोनों की औपचारिक शिक्षा नहीं के बराबर थी। अलबत्ता जिस विषय पर वे चर्चा कर रहे थे, वह शिक्षा की सर्वोच्च औपचारिक पदवी की परिधि के सामर्थ्य से भी बाहर था। वस्तुतः जिन बड़े-बड़े प्रश्नों पर या प्रश्नों को बड़ा बना कर शिक्षित लोग चर्चा करते हैं, सेमिनार करते हैं, मीडिया में छपते हैं, अपनी पी.आर. रेटिंग बढ़ाने की जुगाड़ करते हैं, उन प्रश्नों को बड़ी सहजता से उनके समाधान की दिशा में सामान्य व्यक्ति ले जाता है।
एक सज्जन हैं जो रोज़ाना घूमते समय अपने पैरों से फुटपाथ का सारा कचरा सड़क किनारे एकत्रित करते जाते हैं। सोचें तो पैर से कितना कचरा हटाया जा सकता है..! पर टिटहरी यदि रामसेतु के निर्माण में योगदान दे सकती है तो एक सामान्य नागरिक की क्षमता और उसके कार्य को कम नहीं समझा जाना चाहिए।
आकाश की ओर देखते हुए मनुष्य से प्राय: धरती देखना छूट जाता है। जबकि सत्य यह है कि सारा बोझ तो धरती ने ही उठा रखा है। धरती की ओर मुड़कर और झुककर देखें तो ऐसे लोगों की कमी नहीं जो अपने-अपने स्तर पर समाज और देश की सेवा कर रहे हैं।
इन लोगों को किसी मान-सम्मान की अपेक्षा नहीं है। वे निस्पृह भाव से अपना काम कर रहे हैं।
युवा और किशोर पीढ़ी, वर्चुअल से बाहर निकल कर अपने अड़ोस-पड़ोस में रहनेवाले इन एक्चुअल रोल मॉडेलों से प्रेरणा ग्रहण कर सके तो उनके समय, शक्ति और ऊर्जा का समाज के हित में समुचित उपयोग हो सकेगा।
सोचता हूँ, सामान्य लोगों की असामान्य बातों और तदनुसार क्रियान्वयन पर ही जगत का अस्तित्व टिका है।
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा
इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈