श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी द्वारा गीत-नवगीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु, लघुकथा आदि विधाओं में सतत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ – एक लोकभाषा निमाड़ी काव्य संग्रह 3 हिंदी गीत संग्रह, 2 बाल कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 कारगिल शहीद राजेन्द्र यादव पर खंडकाव्य, तथा 1 दोहा संग्रह सहित 9 साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशनार्थ पांडुलिपि – गीत व हाइकु संग्रह। विभिन्न साझा संग्रहों सहित पत्र पत्रिकाओं में रचना तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन भोपाल से हिंदी एवं लोकभाषा निमाड़ी में प्रकाशन-प्रसारण, संवेदना (पथिकृत मानव सेवा संघ की पत्रिका का संपादन), साहित्य संपादक- रंग संस्कृति त्रैमासिक, भोपाल, 3 वर्ष पूर्व तक साहित्य संपादक- रुचिर संस्कार मासिक, जबलपुर, विशेष— सन 2017 से महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में एक लघुकथा ” रात का चौकीदार” सम्मिलित। सम्मान : विद्या वाचस्पति सम्मान, कादम्बिनी सम्मान, कादम्बरी सम्मान, निमाड़ी लोक साहित्य सम्मान एवं लघुकथा यश अर्चन, दोहा रत्न अलंकरण, प्रज्ञा रत्न सम्मान, पद्य कृति पवैया सम्मान, साहित्य भूषण सहित अर्ध शताधिक सम्मान। संप्रति : भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्रतिष्ठान भोपाल के नगर प्रशासन विभाग से जनवरी 2010 में सेवा निवृत्ति। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “बोझ हमें कम करना होगा…”।)
☆ तन्मय साहित्य #268 ☆
☆ बोझ हमें कम करना होगा... ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
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बोझ हमें कम करना होगा, ऊँचाई पर गर चढ़ना है
आडम्बर से विमुख रहें, जीवन को यदि सुखमय करना है
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प्रश्नों पर प्रतिप्रश्न करेंगे, तो फिर इनका अंत नहीं है
अंकुश लगा सके मन पर, ऐसा कोई श्रीमंत नहीं है
जीवन की क्रीड़ाओं के सँग, जुड़ी हुई है पीड़ाएँ भी
पतझड़ भी है शीत-घाम भी, बारह माह बसन्त नहीं है।
ज्ञानप्रभा विकसित करने को ऊँची शुभ उड़ान भरना है
बोझ हमें कम करना होगा, ऊँचाई पर जब चढ़ना है ।।
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तन से भलें विशिष्ट लगें, मन से भी नहीं शिष्टता छोड़ें
भीतर बाहर रहें एक से, नहीं मुखोटे नकली ओढ़ें
बोध स्वयं का रहे, आत्मचिंतन का चले प्रवाह निरंतर
बिखरे जो मन के मनके हैं, एक सूत्र माला में जोड़ें।
जिनसे शुचिता भाव मिले, ऐसे सम्बन्ध मधुर गढ़ना है
बोझ हमें कम करना होगा, ऊँचाई पर जब चढ़ना है ।।
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स्मृतियाँ दुखद रही वे भूलें, वर्तमान से हाथ मिलाएँ
छोड़ें पूर्वाग्रह मन के सब, चित्तवृत्ति को शुद्ध बनाएँ
खाली करें भरें फिर मन में, शुचिता पूर्ण विचारों को
पथ में आने वाले कंटक, दूर उन्हें भी करते जाऍं,
हल्के-फुल्के मन से फिर विशुद्ध प्रतिमान नये गढ़ना है
बोझ हमें कम करना होगा, ऊँचाई पर जब चढ़ना है ।।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈