डॉ राकेश ‘चक्र’
(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी की अब तक लगभग तेरह दर्जन से अधिक मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग चार दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित बारह दर्जन से अधिक राजकीय प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर राजकीय साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत।
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आप “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 241 ☆
☆ बाल गीत – झूम रहीं टेसू की डालें… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆
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झूम रही टेसू की डालें
बहे समीर सुगंधित है।
झूम रहीं मिल नृत्य कर रहीं
मन मेरा आनन्दित है।।
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जंगल की शोभा है न्यारी
मन को सहज लुभाती है
छिपी – छिपी पत्तों में कोयल
मधुरिम गीत सुनाती है
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अद्भुत आभा देख लग रहा
सृष्टि ईश की वंदित है।
झूम रहीं टेसू की डालें
बहे समीर सुंगंधित है।।
*
उड़ें तितलियाँ मधु रस पीएं
कभी बैठतीं इठलाएँ
सबके ही उर को ये भाएँ
अनगिन आतुर कलिकाएं
*
मधुपों की बासन्ती ऋतु में
मृदु- गुंजार तरंगित है।
झूम रहीं टेसू की डालें
बहे समीर सुगंधित है।।
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लाया है मधुमास छटाएँ
झूम उठी है अमराई
अनगिन पंछी मधुर तान में
बजा रहे हैं शहनाई
*
डाल पात सब सोनचिरैया
जंगल ये अभिनंदित है।
झूम रहीं टेसू की डालें
बहे समीर सुगंधित है।।
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© डॉ राकेश चक्र
(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)
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