श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय एवं ज्ञानवर्धक आलेख हाइकु में व्यक्त भावों की अभिव्यक्ति के मूल स्वर)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 204 ☆

☆ आलेख – हाइकु में व्यक्त भावों की अभिव्यक्ति के मूल स्वर ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ 

हाइकु जापानी काव्य की एक संक्षिप्त किंतु प्रभावशाली विधा है, जो प्रकृति, मानवीय भावनाओं और जीवन के क्षणिक अनुभवों को 5-7-5 की वर्ण-संरचना में समेटती है। भारतीय साहित्य में हिंदी हाइकु ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है, जहाँ यह जापानी शैली से प्रेरित होकर भी भारतीय संस्कृति, संवेदनाओं और जीवन के रंगों से सरोबार है। प्रस्तुत संग्रह में विभिन्न हाइकुकारों ने अपनी रचनात्मकता और भावनात्मक गहराई से जीवन के विविध आयामों को उकेरा है। यहां हम इन सभी हाइकुओं की समीक्षा करते हुए, इनके भाव, शिल्प और संदेश को प्रस्तुत करेंगे।

हमने हाइकु का समीक्षात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए कोशिश की है कि इसमें प्रत्येक हाइकु को शामिल किया जाए। इसमें हाइकु की संक्षिप्तता और गहनता को ध्यान में रखते हुए, इनके भाव, शिल्प और संदेश को संतुलित रूप से विश्लेषित किया गया है। यह समीक्षा प्रेम, प्रकृति, जीवन, दर्शन, और सामाजिक संदर्भों के विविध पहलुओं को उजागर करती है।

 

~ प्रेम और व्यक्तिगत संवेदना

  1. अनिता वर्मा ‘अन्नु’: दिल में बसी/ अब होती हैं बातें/ यादों से तेरी।

यह हाइकु प्रेम की स्मृति और उसकी शाश्वतता को दर्शाता है। प्रिय की अनुपस्थिति में यादें संवाद का आधार बनती हैं, जो एक मार्मिक उदासी को व्यक्त करता है।

  1. अनुपमा प्रधान: वो मेरा प्यार/ न बन पाया मेरा/ रूठी किस्मत।

प्रेम की असफलता और भाग्य की विडंबना यहाँ प्रमुख है। “रूठी किस्मत” एक सशक्त प्रतीक है जो मानव की असहायता को रेखांकित करता है।

  1. उषा पाण्डेय कनक‘: ‘आँखों ने रोपे/ बीज, प्रेम भाव के/ दिल मुस्काये।

प्रेम की उत्पत्ति और उसका विकास इस हाइकु में बीज और मुस्कान के रूपक से सुंदरता से चित्रित हुआ है। यह प्रेम की सकारात्मक शक्ति को दर्शाता है।

  1. निशा नंदिनी भारतीय: तुम्हीं रोशनी/ तुमसे है जीवन/ हो अर्धांगिनी।

यह हाइकु दांपत्य प्रेम और जीवनसाथी के महत्व को उजागर करता है। “रोशनी” और “अर्धांगिनी” भारतीय संस्कृति में नारी की केंद्रीय भूमिका को प्रतिबिंबित करते हैं।

  1. तपेश भौमिक: तन्हाई पर/ याद आई उसकी/ वो हरजाई!

एकाकीपन में प्रेम की स्मृति और विश्वासघात का दर्द इस हाइकु में स्पष्ट है। “हरजाई” शब्द भावनात्मक तीव्रता को बढ़ाता है।

 

~ प्रकृति और ऋतु चित्रण

  1. आशा पांडेय: जाड़े की रात/ गुलजार अलाव/ कहानी झरे।

सर्द रात में अलाव की गर्माहट और कहानियों का प्रवाह इस हाइकु में ग्रामीण जीवन की सादगी को जीवंत करता है। “कहानी झरे” एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति है।

  1. आशीष कुमार मीणा: नाच उठा है/ देखो मन मयूर/ भीग वर्षा में।

वर्षा में मन का आनंद और स्वतंत्रता का चित्रण इस हाइकु की विशेषता है। “मन मयूर” एक सुंदर रूपक है जो प्रकृति और भाव का संनाद दर्शाता है।

  1. अलंकार आच्छा: बरसे घन/ नहाके ताज़ा हुए/ उँघते वन।

वर्षा के बाद जंगल की शांति और ताजगी यहाँ प्रभावशाली है। “उँघते वन” प्रकृति की विश्रामावस्था को सूक्ष्मता से व्यक्त करता है।

  1. उपमा शर्मा: बर्फीली हवा/ गिर गया है पारा/ काँपता तन।

ठंड का यथार्थवादी चित्रण इस हाइकु में है। “काँपता तन” मानव की प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता को उजागर करता है।

  1. कमल कपूर: बाँटे महक/ सुबह की सहेली/ नर्म चमेली।

सुबह की ताजगी और चमेली की सुगंध का संयोजन इस हाइकु में प्रकृति की सौम्यता को दर्शाता है। “सुबह की सहेली” एक रमणीय उपमा है।

  1. चेतना भाटी: कली चटखी/ स्वागतम वसंत/ मन महका।

वसंत का आगमन और मन की प्रसन्नता इस हाइकु में जीवंत है। “कली चटखी” प्रकृति के नवीकरण का प्रतीक है।

  1. जितेन्द्र निर्मोही: तितली गई/ लेकर मकरंद/ फैलती गंध।

प्रकृति की गतिशीलता और सुगंध का प्रसार इस हाइकु में है। “फैलती गंध” सूक्ष्म संवेदना को प्रभावी ढंग से व्यक्त करता है।

  1. प्रदीप कुमार दाश “दीपक”: बसंत आया/ फूल खिलने लगे/ गाये विहग।

वसंत की जीवंतता और पक्षियों का गान इस हाइकु में प्रकृति के उत्सव को चित्रित करता है।

  1. मंजु शर्मा जांगिड़ “मनी”: फागुन आया/ गुलाल रंग लाया/ नभ में छाया।

फागुन की रंगीनी और उत्साह का चित्रण यहाँ है। “नभ में छाया” उत्सव की व्यापकता को दर्शाता है।

  1. डॉ. सीमा उपाध्ये: पतझड़ में/ रेत सी उड़ती है/ जिंदगी यहाँ।

पतझड़ के माध्यम से जीवन की नश्वरता का चित्रण इस हाइकु में गहन है। “रेत सी उड़ती” एक मार्मिक रूपक है।

 

~ पारिवारिक और सामाजिक भाव

  1. डॉ. इन्दु गुप्ता: माँ तू है सूर्य/ मुझमें तेरा रूप/ मैं मीठी धूप।

माँ के प्रति श्रद्धा और संतान में उसकी छाया का भाव इस हाइकु में सुंदर है। “मीठी धूप” मातृत्व की कोमलता को व्यक्त करता है।

  1. कल्पना भट्ट: घर आँगन/ महकाती प्यार से/ मेरी बिटिया।

बेटी के प्रति स्नेह और घर की खुशहाली यहाँ प्रमुख है। “महकाती प्यार से” मासूमियत का प्रतीक है।

  1. गंगा पांडेय “भावुक”: उदास पिता/ अतिथि के आते ही/ खुल के हँसा।

पिता की उदासी का अतिथि के आगमन से हँसी में बदलना भारतीय आतिथ्य और भावनात्मक संतुलन को दर्शाता है।

  1. डॉ. नितीन उपाध्ये: आई घर से/ मिर्ची-हल्दी से सनी/ अम्मा की चिट्ठी।

माँ की चिट्ठी में घर की स्मृति और उसका स्पर्श इस हाइकु में जीवंत है। “मिर्ची-हल्दी” ग्रामीण जीवन की सुगंध को उकेरता है।

  1. डॉ. नीना छिब्बर: पढ़ चिठ्ठियाँ/ अधखुली पुरानी/ मिले जवाब।

पुरानी चिट्ठियों में छिपे भाव और उत्तरों का चित्रण इस हाइकु में नॉस्टैल्जिया को जागृत करता है।

  1. सतीश राठी: संस्कार मिले/ बनता प्रतिबिम्ब/ पुत्र पिता का।

पिता से पुत्र में संस्कारों का संचरण इस हाइकु में है। “प्रतिबिम्ब” पारिवारिक विरासत को दर्शाता है।

 

~ जीवन, दर्शन और सामाजिक टिप्पणी

  1. प्रकाश कांबले: युद्ध चाहिए?/ शांति का संदेश है/ बुद्ध चाहिए।

शांति और अहिंसा का संदेश इस हाइकु में प्रभावशाली है। “बुद्ध चाहिए” समकालीन युद्ध की विभीषिका के बीच प्रासंगिक है।

  1. डॉ मंजु गुप्ता: जिस वृक्ष की/ छाँह में नर बैठे/ उसी को काटे।

पर्यावरण विनाश और मानव की कृतघ्नता का यह हाइकु सशक्त टिप्पणी है। यह प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी को उजागर करता है।

  1. डॉ. रीना सागर: यंत्रों में बंधा,/ मन की आज़ादी,/ विलुप्त हुई।

तकनीक के प्रभाव से मानसिक स्वतंत्रता के ह्रास का चित्रण यहाँ है। यह आधुनिक जीवन की विडंबना को व्यक्त करता है।

  1. डॉ. पूर्वा शर्मा: उम्मीद-माँझा/ ख्वाहिशों की पतंग/ जीवन यही।

जीवन को पतंग और उम्मीद को माँझे के रूप में चित्रित करना इस हाइकु की मौलिकता है। यह आकांक्षाओं और संतुलन को दर्शाता है।

  1. गिरीश चंद्र ओझा इन्द्र: जीव है आया/ जगत भरमाया/ भव-जलधि।

जीवन की माया और संसार के भ्रम को यह हाइकु दार्शनिक रूप से व्यक्त करता है। “भव-जलधि” गहन चिंतन को प्रेरित करता है।

  1. डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा: निकली रात/ संसार को सुलाने/ दर्द भूलाने।

रात की शांति और दर्द से मुक्ति का भाव इस हाइकु में है। यह जीवन की क्षणभंगुरता को सूचित करता है।

  1. प्रगति त्रिपाठी: महत्वाकांक्षा/ भर लूं मुट्ठी में ये/ पूरा संसार।

महत्वाकांक्षा की अतिशयता और उसकी सीमा यहाँ व्यक्त हुई है। “मुट्ठी में संसार” एक प्रभावशाली रूपक है।

  1. राम सिंह साद‘: ‘भूला है वन्दा/ अपने को स्वयं ही/ विडंम्वना है।

आत्म-विस्मृति और उसकी विडंबना इस हाइकु में गहन दर्शन के साथ प्रस्तुत हुई है।

  1. डॉ लता अग्रवाल: त्रिवेणी तट/ होगा पवित्र स्नान/ जीव उध्दार।

आध्यात्मिकता और पवित्रता का भाव इस हाइकु में है। “जीव उध्दार” मुक्ति की आकांक्षा को दर्शाता है।

  1. श्याम मठपाल: पेड़ सूख रहे।/ धरती तप रही।/ आदमी मौन।

पर्यावरण संकट और मानव की उदासीनता का यह हाइकु सशक्त चेतावनी है। “आदमी मौन” गहरी टिप्पणी है।

 

~ नैतिकता, संस्कार और संदेश

  1. तारकेश्वर सुधि‘: ‘कड़वे बोल/ बनते तलवार/ पहले तोल।

वाणी की शक्ति और संयम का संदेश इस हाइकु में है। “पहले तोल” नैतिकता की शिक्षा देता है।

  1. एस के कपूर “श्री हंस”: दिल हो साफ/ रिश्ते टिकते तभी/ गलती माफ।

रिश्तों में ईमानदारी और क्षमा का महत्व यहाँ व्यक्त हुआ है। यह हाइकु सामाजिक मूल्यों को रेखांकित करता है।

  1. सत्य नारायण: माता-पिता का/ आदर करना ही/ है ये संस्कार।

माता-पिता के प्रति सम्मान और संस्कारों का यह हाइकु भारतीय मूल्यों को प्रतिबिंबित करता है।

  1. (आचार्य) संजीव वर्मा सलिल‘: ‘नहीं बिगड़ा/ नदी का कुछ कभी/ घाट के कोसे।

नदी की निर्मलता और मानव की आलोचना के बीच यह हाइकु प्रकृति की उदारता को दर्शाता है।

  1. प्रदीप कुमार शर्मा: धीरज धर/ मिलेगी कामयाबी/ कोशिश कर।

धैर्य और परिश्रम का संदेश इस हाइकु में सरल किंतु प्रभावी ढंग से व्यक्त हुआ है।

 

~ विविध भाव और चित्र

  1. कृष्णलता यादव: पाण्डुलिपियाँ/ अनुभव-लड़ियाँ/ झुर्रियों मध्य।

अनुभव और वृद्धावस्था का यह हाइकु गहन है। “झुर्रियों मध्य” जीवन के संचित अनुभवों को दर्शाता है।

  1. नमिता राकेश: झरना फूटे/ जो हंसे लड़कियां/ गीली मिट्टी सी।

लड़कियों की मासूम हँसी और प्रकृति का संयोजन इस हाइकु में रमणीय है। “गीली मिट्टी” ताजगी का प्रतीक है।

  1. प्रतिभा जोशी: कृष्ण मगन/ करें गोपियाँ रास/ भक्ति स्वरूप।

भक्ति और रास का यह हाइकु आध्यात्मिकता को व्यक्त करता है। “कृष्ण मगन” भक्ति की पराकाष्ठा को दर्शाता है।

  1. प्रणाली श्रीवास्तव: खूब उत्साह/ सोने-चांदी-पीतल/ क्रय की प्रथा।

भौतिकता और उत्साह का यह हाइकु सामाजिक रीति पर टिप्पणी करता है।

  1. प्रवीण शर्मा: प्रीत की झील/ खूब भर बदरा।/ प्यासे बसेरा।

प्रेम की गहराई और उसकी तृप्ति यहाँ चित्रित हुई है। “प्यासे बसेरा” भावनात्मक संतुष्टि को दर्शाता है।

  1. डॉ. प्रमोद सागर: शुद्ध सलिला/ पाप हरे सबका,/ शिव आँचल।

आध्यात्मिक शुद्धता और शिव की कृपा इस हाइकु में है। “शुद्ध सलिला” पवित्रता का प्रतीक है।

  1. बसन्ती पंवार: जीवन जैसे/ सांप छछूंदर है/ छोड़ता नहीं।

जीवन की जटिलता और उससे मुक्ति की असंभवता यहाँ व्यक्त हुई है। यह एक रोचक रूपक है।

  1. राजपाल सिंह गुलिया: पेड़ रो रहे/ धुआँ पीकर ही ये/ बड़े हो रहे।

प्रदूषण और पर्यावरण की पीड़ा का यह हाइकु मार्मिक है। “पेड़ रो रहे” संवेदनशील चित्रण है।

  1. लाडो कटारिया: एहतियात/ है कोरोना अभी भी/ चौकस रहें।

महामारी के प्रति सतर्कता का यह हाइकु समकालीन संदर्भ में प्रासंगिक है।

  1. विभा रानी श्रीवास्तव: पक्षी का गीत/ वो मेरे होंठो पर/ ऊँगली रखे।

प्रकृति और मौन का यह हाइकु सूक्ष्म संवेदना को व्यक्त करता है।

  1. विमला नागला: उर मूरत/ सांवली है सूरत/ कष्ट हरता।

प्रिय या ईश्वर की छवि और उसकी कृपा यहाँ व्यक्त हुई है।

  1. शेख़ शहज़ाद उस्मानी: सुस्वागतम/ आइये व जाइये/ रोका किसने?’

जीवन की स्वतंत्रता और उसकी क्षणभंगुरता का यह हाइकु हल्के व्यंग्य के साथ प्रस्तुत हुआ है।

  1. डा. सरोज गुप्ता: आज मौसम/ बड़ा खुशगवार/ हो जाए मस्ती।

मौसम की खुशी और जीवन का आनंद यहाँ सरलता से व्यक्त हुआ है।

~ निष्कर्ष

यह हाइकु संग्रह हिंदी साहित्य में हाइकु की व्यापकता और गहराई को प्रदर्शित करता है। प्रेम, प्रकृति, परिवार, दर्शन, और सामाजिकता के विविध रंग इन रचनाओं में संक्षिप्त किंतु प्रभावशाली ढंग से उभरे हैं। प्रत्येक हाइकु अपने आप में एक संपूर्ण भाव-चित्र है, जो पाठक को सोचने और अनुभव करने के लिए प्रेरित करता है। ये रचनाएँ हाइकु की उस शक्ति को प्रमाणित करती हैं, जो कम शब्दों में गहन अर्थ समेट लेती है।

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© श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

16-07-2024

संपर्क – 14/198, नई आबादी, गार्डन के सामने, सामुदायिक भवन के पीछे, रतनगढ़, जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) पिनकोड-458226

ईमेल  – [email protected] मोबाइल – 9424079675 /8827985775

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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