श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 337 ☆

?  कविता – छतनारा…  ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

साथ यहां हैं कलम तूलिका

कोमल कोंपल जड़ें विशाल

छांव बड़ी रचनाकारों की, है छतनारा

 

शब्द चित्र में हैं स्पंदन

धरती है कैनवास हमारा

आसमान पर इंद्रधनुष, है छतनारा

 

कलाकार के हृदय बड़े हैं

है समेटना दुनियां भर को

बांहों के हम सब के घेरे, हैं छतनारा

 

शुष्क हृदय वाली दुनियां में

बम बारूद धुंध का उत्तर

शीतल मंद मधुर झोंका है, ये छतनारा

 

उमस भरे मौसम में  दिखते,

घुप रातों के आसमान में बिखरे तारे

घुसती आये चांदनी जिससे, वो खिड़की छतनारा

 

एक सूत्र से कला उपासक

मिल बैठें एक वृक्ष के नीचे

जुड़ते हम जिस एक भाव से, वह छतनारा

 

हर मन में थोड़ा रावण है

ज्यादा राम भरा होता है

जो आलोकित करे राम को वो छतनारा

 

अभिव्यक्ति की हैं कई विधाएं

कई माध्यम हैं कहने के, कहकर

सुनकर मिलने वाला सच्चा सुख ही छतनारा

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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