श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 149 ☆खुशियों का कोई बाजार नहीं होता

☆ मुक्तक – ।। खुशियों का कोई बाजार नहीं होता ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

अमृत जहर एक ही जुबां पर, निवास करते हैं।

इसीसे लोग व्यक्तित्व का, आभास करते हैं।।

कभी नीम कभी शहद, होती जिव्हा हमारी।

इसीसे जीवन का हम सही, अहसास करते हैं।।

=2=

बहुत नाजुक दौर किसी से, मत रखो बैर।

हो सके मांगों प्रभु से, सब की ही खैर।।

तेरी जुबान से ही तेरे दोस्त, और दुश्मन बनेंगें।

हर बात बोलने से पहले, जाओ कुछ देर ठहर।।

=3=

तीर कमान से निकला, वापिस नहीं आ पाता है।

शब्द भेदी वाण सा फिर, घाव करके आता है।।

दिल से उतरो नहीं पर, बल्कि दिल में उतर जाओ।

गुड़ दे नहीं सकते मीठा, बोलने में क्या जाता है।।

=4=

जानलो खुशी देना खुशी पाने, का आधार होता है।

वो ही खुशी दे पाता जिसमें, सरोकार होता है।।

खुशी कभी आसमान से, कहीं भी टपकती नहीं।

कहीं पर खुशी का लगता, बाजार नहीं होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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