श्री हेमंत तारे
श्री हेमन्त तारे जी भारतीय स्टेट बैंक से वर्ष 2014 में सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्ति उपरान्त अपने उर्दू भाषा से प्रेम को जी रहे हैं। विगत 10 वर्षों से उर्दू अदब की ख़िदमत आपका प्रिय शग़ल है। यदा- कदा हिन्दी भाषा की अतुकांत कविता के माध्यम से भी अपनी संवेदनाएँ व्यक्त किया करते हैं। “जो सीखा अब तक, चंद कविताएं चंद अशआर” शीर्षक से आपका एक काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुका है। आज प्रस्तुत है आपकी एक ग़ज़ल – कब तक सुनाओगी मुझे,…।)
कब तक सुनाओगी मुझे… ☆ श्री हेमंत तारे ☆
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घर बहुत बना चुके, अब बाग लगाना चाहिए
घर के सेहन में जतन से, चम्पा लगाना चाहिए
रातरानी और चमेली हर हाल महकती है, मगर
रूठे गुलाब औ हरसिंगार को अब मनाना चाहिए
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लाजिमी है अपनी सेहत को संवारे हम, मगर
कभी दिल की सदा सुनकर सिगरेट जलाना चाहिए
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कब तक सुनाओगी मुझे मौसम की बातें दिलरूबा
दिल के क़फ़स में कैद जो, वो जज़्बे सुनाना चाहिए
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तुम संजीदा लगते हो अच्छे ये सच तो है जानम मगर
मुझको मेरा ग़ुमशुदा, दिलकश – दिवाना चाहिए
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धूल – मिट्टी का सफ़र ” हेमंत ” तू करता रहा
अब वक्त तेरा है तुझे दिल की ही करना चाहिए
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(एहतिमाम = व्यवस्था, सिम्त = तरफ, सुकूँ = शांति, एज़ाज़ = सम्मान , शै = वस्तु, सुर्खियां = headlines, आश्ना = मित्र, मसरूफियत = व्यस्तता)
© श्री हेमंत तारे
मो. 8989792935
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈