डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

( ई- अभिव्यक्ति का यह एक अभिनव प्रयास है।  इस श्रंखला के माध्यम से  हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकारों को सादर चरण स्पर्श है जो आज भी हमारे बीच उपस्थित हैं एवं हमें हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। इस पीढ़ी के साहित्यकारों को डिजिटल माध्यम में ससम्मान आपसे साझा करने के लिए ई- अभिव्यक्ति कटिबद्ध है एवं यह हमारा कर्तव्य भी है। इस प्रयास में हमने कुछ समय पूर्व आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एकआलेख आपके लिए प्रस्तुत किया था जिसे आप निम्न  लिंक पर पढ़ सकते हैं : –

हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆ – हेमन्त बावनकर

इस यज्ञ में आपका सहयोग अपेक्षित हैं। आपसे अनुरोध है कि कृपया आपके शहर के वरिष्ठतम साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से हमारी एवं आने वाली पीढ़ियों को अवगत कराने में हमारी सहायता करें। हम यह स्तम्भ इस रविवार से प्रारम्भ कर रहे हैं। हमारा प्रयास रहेगा  कि आपको प्रत्येक रविवार एक ऐसे ही ख्यातिलब्ध साहित्यकार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से आपको परिचित करा सकें।

इस शृंखला की पुनः शुरुआत गुरुवर डॉ राजकुमार सुमित्र जी से प्रारम्भ कर रहे हैं। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में उनकी सुपुत्री एवं प्रसिद्ध साहित्यकार  डॉ भावना शुक्ल से बेहतर कौन लिख सकता है। आज प्रस्तुत है “डॉ.राजकुमार तिवारी सुमित्र – व्यक्तित्व एवं कृतित्व”

☆ डॉ.राजकुमार तिवारी सुमित्र – व्यक्तित्व एवं कृतित्व

संस्कारधानी जबलपुर के यशस्वी साहित्यकार, साहित्याकाश के जाज्ज्वल्यमान नक्षत्र, संवेदनशील साहित्य सर्जक, अनुकरणीय, प्रखर पत्रकार, कवि, लेखक, संपादक, व्यंग्यकार, बाल साहित्य के रचयिता, प्रकाशक अनुवादक, धर्म, अध्यात्म, चेतना संपन्न, तत्वदर्शी चिंतक, साहित्यिक-सांस्कृतिक और सामाजिक संस्थाओं के प्रणेता डॉ.राजकुमार तिवारी “सुमित्र” बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। सुमित्र जी में सेवा भावना, सहानुभूति, विनम्रता, गुरु-गंभीरता तथा सहज आत्मीयता की सुगंध उनके व्यक्तित्व में समाहित है।

उन्होंने लगभग छह दशकों तक जन मन को आकर्षित एवं प्रभावित किया। साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में अभूतपूर्व ख्याति अर्जित की है और अनवरत करते जा रहे हैं। नगर ही नहीं देश तथा विदेशों तक उनकी यश पताका लहरा रही है।

जबलपुर के राष्ट्र सेवी साहित्यकार एवं पत्रकार स्वर्गीय पंडित दीनानाथ तिवारी के पौत्र तथा भोपाल के ख्याति लब्ध अधिवक्ता “ज्ञानवारिधि” स्वर्गीय पंडित ब्रह्म दत्त तिवारी के सुपुत्र डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” का जन्म 25 अक्टूबर 1938 को जबलपुर नगर में हुआ।

साहित्य और पत्रकारिता के संस्कार उत्तराधिकार में प्राप्त हुए. मानस मर्मज्ञ डॉ ज्ञानवती अवस्थी की प्रेरणा से सन 1952 से काव्य रचना प्रारंभ की। मध्य प्रदेश के अनेक शिक्षण संस्थानों में अध्ययन करते हुए पीएचडी तक की उपाधियाँ ससम्मान प्राप्त की। शिक्षकीय अध्यापन-कर्म से जीवनारंभ कर सुमित्र जी बहुमुखी प्रतिभा साहित्य साधना तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में सतत गतिशील रहे…

सुमित्र जी के शब्दों में…

मित्रों के मित्र सुमित्र का व्यक्तित्व ‘यथा नाम तथा गुण’ की उक्ति को चरितार्थ करता है, धन से ना सही किंतु मन से तो वे ‘राजकुमार’ ही है। उन्होंने लिखा है…

” मेरा नाम सुमित्र है, तबीयत राजकुमार।

पीड़ा की जागीर है, बांट रहा हूँ प्यार।”

जबलपुर से प्रकाशित नवीन दुनिया के साहित्य संपादक के रूप में उन्होंने समर्पित होकर पत्रकारिता और साहित्य की सेवा की और ना जाने कितने नवोदित सृजन-धर्मी पत्रकार, कवि, लेखक सुमित्र जी के निश्चल स्नेह और आशीष की छाया तले पल्लवित पुष्पित हुए. जो आज साहित्य की विभिन्न विधाओं में एक समर्थ रचनाकार के रूप में गिने जाते हैं।

साहित्य की शायद ही कोई ऐसी विधा है जिसमें सुमित्र जी ने अपनी लेखनी को ना चलाया होगा इनका कौशल बुंदेली काव्य सृजन में भी देखने को मिलता है।

आपके शब्दों में…वीणा पाणि की आराधना- सुफलित  नाद

“शब्द ब्रह्म आराधना, सुरभित सफेद नाद।

उसका ही सामर्थ्य है, जिसको मिले प्रसाद।“

सुमित्र जी की रचनात्मक उपलब्धियाँ अनंत है। पत्रकार साहित्यकार डॉ राजकुमार तिवारी सुमित्र ने पत्रकारिता के क्षेत्र को भी गौरवान्वित किया वहीं दूसरी ओर आपने हिन्दी साहित्य के कोष की श्री वृद्धि भी की है। छंद बद्ध कविता, छंद मुक्त कविता, कहानी, व्यंग, नाटक आदि सभी विधाओं में आपने लिखा है इसके साथ ही आपने श्री रमेश थेटे की मराठी कविताओं का रूपांतर‘अंधेरे के यात्री’ तथा पीयूष वर्षी विद्यावती के मैथिली गीतों का हिन्दी में गीत रूपांतर आपको मूलतः रस प्रवण साहित्यकार सिद्ध करता है आपकी इस साहित्य साधना और साहित्यिक पत्रकारिता अक्षुण्ण  है।

सुमित्र जी के काव्य रस की बौछार …

प्रिय के सौंदर्य को लौकिक दृष्टि से देखते हुए भी उसमें अलौकिकता कैसे आभास किया जा सकता है इस भाव को बड़े ही पवित्र प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया।

नील झील से नयन तुम्हारे

जल पाखी-सा मेरा मन है….

दांपत्य जीवन में रूठना मनाना का क्रम चलता है ऐसे में पत्नी की पति को कुछ कहने के लिए विवश करती है… गीत की कुछ पंक्तियाँ

 

बिछल गया माथे से आंचल

किस दुनिया में खोई हो

लगता है तुम आज रात भर

चुपके चुपके रोई हो।

रोना तो है सिर्फ़ शिकायत

इसकी उम्र दराज नहीं

टूट टूट कर जो ना बजा हो

ऐसा कोई साज नहीं

मैं तुमसे नाराज नहीं।

 

दूसरों के सुख दुख में अपने सुख-दुख की प्रतिछाया…

 

दूसरों के दुख को पहचान

उसे अपने से बड़ा मान

तब तुझे लगेगा कि तू

पहले से ज़्यादा सुखी है

और दुनिया का एक बड़ा हिस्सा

तुझ से भी ज़्यादा दुखी है…

 

नई कविता के तेवर को अत्यंत मार्मिक ढंग से कविता में प्रस्तुत किया है…

 

तुमने

मेरी पिनकुशन-सी

जिंदगी से

सारे ‘पिन’ निकाल लिए

बोलो।

इन खाली जख्मों को लिए

आखिर कोई कब तक जिए;

काव्य शिल्प लिए…

 

अंतहीन गंधहीन मरुस्थल में

भटकता

मेरा तितली मन

दिवास्वप्न देखता देखता

मृग हो जाता है।

कल्पना का वैशिष्ट…

मेरी दृष्टि

मलबे को कुरेद रही है-

आह! लगता है-

गांधी के रक्त स्नात वस्त्र

काले पड़ गए हैं

पंचशील के पांव में

छाले पड़ गए हैं।

 

यादें नामक कविता का अंश…

 

जैसे बिजली कौंधती है

घन में,

यादें कौंधती हैं

मन में।

 

प्रेम तो ईश्वरीय वरदान है। इनको केंद्रित कर दोहे…

 

“नहीं प्रेम की व्याख्या, नहीं प्रेम का रूप।

कभी चमकती चांदनी, कभी देखती धूप।“

0000

“स्वाति बिंदु-सा प्रेम है, पाते हैं बड़भाग।

प्रेम सुधा संजीवनी, ममता और सुहाग।“

 

प्रिय की दूरी की पीड़ानुभूति—-

 

“तुम बिन दिन पतझड़ लगे, दर्शन है मधुमास।

एक झलक में टूटता, आंखों का उपवास.. ।”

सुमित्र जी ने स्मृति को, याद को विभिन्न कोणों से चित्रित किया है———

 

“याद हमारी आ गई, या कुछ किया प्रयास।

अपना तो यह हाल है, यादें बनी लिबास।”

0000

“फूल तुम्हारी याद के, जीवन का एहसास।

वरना है यह जिंदगी, जंगल का रहवास।”

अहंकार के विसर्जन के बिना प्रेम का कोई औचित्य नहीं है।

 

“सांसो में तुम हो रचे, बचे कहाँ हम शेष।

अहम समर्पित कर दिया, करें और आदेश।”

“फूल अधर पर खिल गए, लिया तुम्हारा नाम ।

मन मीरा-सा हो गया, आँख हुई घनश्याम।“

 

साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में सुमित्र जी ने जो जीवन जिया वह घटना पूर्ण चुनौतीपूर्ण रहा। सुमित्र के जीवन को सजाया संवारा और उसे गति दी …जीवनसंगिनी स्मृति शेष डॉ.गायत्री तिवारी ने। सुमित्र जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के इन गुणों का प्रवाह निरंतर बना रहे ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूँ कि वह दीर्घायु हो। मैं अपने आप को बहुत ही सौभाग्यशाली मानती हूँ कि मैं डॉ. राजकुमार ‘सुमित्र’ और डॉ गायत्री तिवारी की पुत्री हूँ।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

wz/21 हरि सिंह पार्क, मुल्तान नगर, पश्चिम विहार (पूर्व ), नई दिल्ली –110056

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

6 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
प्रदीप शशांक जबलपुर

बहुत बढ़िया ।

डॉ भावना शुक्ल

धन्यवाद जी

Jai Prakash Pandey

सुमित्र जी को प्रणाम। बचपन में वे मेरी भी रचनाओं को नवीन दुनिया में ससम्मान छापते थे और उत्साहित करते थे

डॉ भावना शुक्ल

धन्यवाद जी

Dr Kamna tiwari shrivastava

बहुत बढ़िया